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प्रज्ञापना सूत्र
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यहाँ पर अर्द्धमागधी को आर्य भाषा कहा है। इसमें मिली छहों भाषाएं एवं उससे बनी हिन्दी भाषा को आर्य भाषा समझा जाता है। वर्तमान की देवनागरी (हिन्दी) लिपि को ब्राह्मी लिपि का ही परिवर्तित संस्कारित रूप समझा जाता है। अन्य लिपियों की परम्पराएं नहीं मिलने से स्पष्ट कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। तथापि वर्तमान भारत में प्रचालित अधिकांश भाषाओं के आर्य होने की संभावना की जाती है। आंग्ल भाषा व उर्दू भाषा को तो अनार्य भाषा ही समझा जाता है। ब्राह्मी लिपि के १८ प्रकारों में आये हुए दूसरे प्रकार 'यवनानी' को उर्दू भाषा नहीं समझना चाहिये।
से किं तं णाणारिया? णाणारिया पंचविहा पण्णत्ता। तंजहा - आभिणिबोहिय णाणारिया, सुय णाणारिया, ओहि णाणारिया, मणपज्जव णाणारिया, केवल णाणारिया। से तं णाणारिया॥७२॥
भावार्थ - प्रश्न - ज्ञान आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - ज्ञान आर्य पांच प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं - १. आभिनिबोधिक ज्ञान आर्य २. श्रुतज्ञान आर्य ३. अवधिज्ञान आर्य ४. मनःपर्यवज्ञान आर्य और ५. केवलज्ञान आर्य। इस प्रकार ज्ञान आर्य कहे हैं।
विवेचन - प्रश्न - ज्ञान किसको कहते हैं ?
उत्तर - "ज्ञायते परिच्छिद्यते वस्तु तत्त्वं अनेन इति ज्ञानं" अथवा "ज्ञायन्ते परिच्छिद्यन्ते अर्था अनेन अस्मिन् अस्मात् वा इति ज्ञानं"
अर्थ - जिसके द्वारा वास्तविक रूप से पदार्थों का अवबोध (ज्ञान) हो उसे ज्ञान कहते हैं। उस ज्ञान के पांच भेद ऊपर बताये गये हैं। इनका विस्तृत अर्थ और भेद प्रभेद का वर्णन नन्दी सूत्र में बतलाया गया है। यहाँ पर ज्ञान आर्य के भेदों में केवलज्ञान आर्य में तीर्थंकरों के सिवाय शेष सामान्य केवलियों का ही ग्रहण हुआ है। क्योंकि तीर्थंकरों का तो ऋद्धि प्राप्त आर्य के छह भेदों में नाम बताया है यहाँ अनऋद्धि प्राप्त के भेद होने से तीर्थंकरों को नहीं लिया है। . यहाँ पर नौ प्रकार के आर्यों का कथन या वर्णन चल रहा है। इसमें पहले यह बताया जा चुका है कि क्षेत्र आर्य, कर्म आर्य आदि छह भेद द्रव्य आर्य के हैं। आगे के तीन भेद (ज्ञान आर्य, दर्शन आर्य और चारित्र आर्य) भाव आर्य हैं। ये भक्ति के कारण बनते हैं। इसीलिए इनको भाव आर्य कहा गया है।
से किं तं दंसणारिया? दंसणारिया दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - सरागदंसणारिया य वीयरागदंसणारिया य॥७३॥
भावार्थ - प्रश्न - दर्शन आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
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