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________________ ******************* जिह्वाकार - नाटक, बहुरूपिये आदि के उपयोग में आने वाली नकली जीभ, मुखौटा आदि बनाने वाले । कोडीकाट - कोडियों को रंगने वाले चित्रित करने वाले, कोड़ियों की माला एवं खिलौने बनाने वाले 'कोडिकार' कहलाते हैं। रफू, कसीदा, स्वेटर आदि बुनना, बहियाँ, पुस्तकों आदि बनाना, जिल्द चढ़ाना, राखी आदि बनाना, चटाईयाँ - छाबड़ियाँ बनाना इत्यादि काम करने वाले शिल्प आर्य समझे जाते हैं । से किं तं भासारिया? भासारिया जे णं अद्धमागहाए भासाए भासेंति, जत्थ वि यणं बंभी लिवी पवत्तइ । बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेक्खविहाणे पण्णत्ते । तंजा - १ बंभी, २ जवणालिया, ३ दोसापुरिया, ४ खरोट्टी, ५ पुक्खरसारिया, ६ भोगवइया, ७ पहराइया, ८ अंतक्खरिया, ९ अक्खरपुट्ठिया, १० वेणइया, ११ णिण्हईया, १२ अंकलिवी, १३ गणियलिवी, १४ गंधव्वलिवी, १५ आयंसलिवी, १६ माहेसरी, १७ दोर्मिलिवी ( दामिली), १८ पोलिंदी । से तं भासारिया ॥ ७१ ॥ भावार्थ प्रश्न भाषा आर्य किसे कहते हैं और कितने प्रकार के कहे गये हैं ? - 1 Jain Education International प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना ******* - उत्तर भाषा आर्य उनको कहते हैं जो अर्धमागधी भाषा में बोलते हैं और जहा ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया जाता है । ब्राह्मी लिपि में अठारह प्रकार का लेख विधान बताया गया है। वह इस प्रकार है - १. ब्राह्मी २. यवनानी ३. दोषापुरिका ४. खरोष्ट्री ५. पुष्करशारिका ६. भोगवलिका ७ प्रहरादिका ८. अंतक्षरिका ९. अक्षरपुष्टिया १०. वैनयिका ११. निह्वविका १२. अंकलिपि १३. गणितलिपि १४. गांधर्वलिपि १५. आदर्शलिपि १६. माहेश्वरी १७ तामिली - द्राविद्री १८. पोलिन्दी । इस प्रकार भाषा आर्य कहे गये हैं । - के १२५ है और पैर हैं और मैं और मैं******* और और भ प्रश्न- अर्धमागधी भाषा किसे कहते हैं ? उत्तर- जिसमें छह भाषाओं का मिश्रण हो उसे अर्ध मागधी भाषा कहते हैं। यथाप्राकृतसंस्कृतमागध-पिशाचभाषा च शौरसेनी च । षष्ठोऽत्र भूरिभेदो, देशविशेषाद् अपभ्रंशः ॥ १॥ अर्थ संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी, पैशाची, अपभ्रंश और मगध देश । ये छह भाषायें जिसमें मिली हुई हो, मगधदेश की भाषा का विशेष अंश हो उसे अर्धमागधी भाषा कहते हैं। तीर्थंकर भगवान् अर्धमागधी भाषा ही धर्मोपदेश फरमाते हैं और सब देवों की भाषा भी अर्धमागधी हैं। तीर्थंकर भगवान् यद्यपि अर्धमागधी भाषा में धर्मोपदेश फरमाते हैं तथापि उनका ऐसा अतिशय हैं कि वह अर्धमागधी भाषा सब प्राणियों को अपनी अपनी भाषा में परिणत हो जाती है। इसलिए बारह प्रकार की परिषद उनकी भाषा को अच्छी तरह से समझ लेती है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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