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प्रज्ञापना सूत्र
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अन्तरद्वीपिक मनुष्यों के चित्र बनाये हैं उसमें एकोरुक का चित्र एक जंघा वाला मनुष्य तथा अश्वमुख अर्थात घोडे के समान मख वाला तथा गजकर्ण-हाथी के समान कान वाला ऐसे चित्र बना दिये गए परन्त यह उचित नहीं है क्योंकि ये तो नाम मात्र है। नाम के अनुसार अर्थ नहीं करना चाहिए। जीवाजीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति में इन युगलिक पति पत्नी अर्थात् पुरुष और स्त्री दोनों की सुन्दरता का वर्णन दिया गया है उसमें नखशिख अर्थात् पैरों के नखों से लेकर चोटी तक का सम्पूर्ण शरीर का वर्णन दिया है। इन अन्तरद्वीपों के मनुष्य और स्त्री वज्रऋषभनाराच संहनन वाले और समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं उनके शरीर में बत्तीस उत्तम लक्षण होते हैं। वे सर्वाङ्ग सुन्दर होते हैं। कर्मभूमि के सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा उनकी सुन्दरता अधिक होती है। इसका निष्कर्ष यह निकलता है कि ये घोड़े के मुख की तरह मुख वाले मनुष्य नहीं होते अपितु बहुत सुन्दर शरीर और मुख वाले होते हैं।
से किं तं अकम्मभूमगा ? अकम्मभूमगा तीसइ विहा पण्णत्ता। तंजहा-पंचहिं हेमवएहिं पंचहिं हिरण्णवएहिं, पंचहिं हरिवासेहिं, पंचहिं रम्मगवासेहिं, पंचहिं देवकुरूहिं( कुराहिं), पंचहिं उत्तरकुरूहिं( कुराहिं) से तं अकम्मभूमगा॥६२॥
भावार्थ - प्रश्न - अकर्म भूमक (अकर्म भूमि के मनुष्य) कितने प्रकार के कहे गये हैं? :
उत्तर - अकर्मभूमि के मनुष्य तीस प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं-पांच हैमवत, पांच हैरण्यवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यक्वर्ष, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु इन तीस क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य अकर्म भूमि के मनुष्य कहलाते हैं। यह अकर्म भूमि के मनुष्यों का वर्णन हुआ।
विवेचन - प्रश्न - अकर्म-भूमि किसे कहते हैं ?
उत्तर - जहाँ असि, मसि, कृषि आदि की प्रवृत्ति नहीं होती है उसे अकर्म भूमि कहते हैं। इन क्षेत्रों में दस प्रकार के वृक्ष होते हैं। ये अपने नाम के अनुसार फल देते हैं इन्हीं से अकर्म भूमिज मनुष्य अपना निर्वाह करते हैं। ___ प्रश्न - अकर्म भूमि को भोग भूमि क्यों कहते हैं ?
उत्तर - कोई भी कर्म (कार्य) न करने से और वृक्षों द्वारा मनोवांच्छित भोग (फल) प्राप्त होने से इन क्षेत्रों को भोग भूमि भी कहते हैं ।
प्रश्न - दस प्रकार के वृक्ष कौन से हैं और उनका क्या अर्थ है ?
उत्तर - अकर्म भूमि में उत्पन्न होने वाले युगलियों के लिये जो उपभोग में आते हैं अर्थात् उनकी आवश्यकताओं को पूरी करने वाले दस प्रकार के वृक्ष होते हैं। उनके नाम और अर्थ इस प्रकार हैं -
१. मतङ्गा - शरीर के लिए पौष्टिक रस देने वाले। २. भृताङ्गा - पात्र आदि देने वाले।
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