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प्रथम प्रज्ञापना पद
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३. त्रुटिताङ्गा - बाजे (वादिन्त्र) का काम देने वाले। ४. दीपाङ्गा - दीपक का काम देने वाले।
५. ज्योतिरंगा - प्रकाश को ज्योति कहते हैं। सूर्य के समान प्रकाश देने वाले। अग्नि को भी ज्योति कहते हैं। अग्नि के समान काम देने वाले।
६. चित्राङ्गा - विविध प्रकार के फूल देने वाले। ७. चित्ररसा - विविध प्रकार के भोजन देने वाले। ८. मण्यङ्गा - आभूषण का काम देने वाले। ९. गेहाकारा - मकान के आकार में परिणत हो जाने वाले अर्थात् मकान की तरह आश्रय देने वाले। १०. अणिगणा (अनग्ना)- वस्त्र आदि का काम देने वाले।
टीकाकार ने और ग्रंथकार ने इन वृक्षों को कल्पवृक्ष लिखा है परन्तु ठाणांग सूत्र के दसवें ठाणे के तीसरे उद्देशक में इनको दस प्रकार के वृक्ष लिखा है। जीवाजीवाभिगम तथा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में भी इनको वृक्ष ही कहा है अतः इनको कल्पवृक्ष कहना ठीक नहीं है।
से किं कम्मभूमगा? कम्मभूमगा पण्णरस विहा पण्णत्ता। तंजहा - पंचहिं भरहेहिं, पंचहिं एरवएहिं, पंचहिं महाविदेहेहिं । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - आरिया य मिलक्खू य॥६३॥
कठिन शब्दार्थ - आरिया - आर्य, मिलक्खू - म्लेच्छ। भावार्थ - प्रश्न - कर्म भूमक (कर्मभूमि के मनुष्य) कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - कर्म भूमि के मनुष्य पन्द्रह प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह इन पन्द्रह क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य। वे संक्षेप में दो प्रकार के कहे गये हैं - १. आर्य और २. म्लेच्छ।
विवेचन - प्रश्न - कर्मभूमि किसे कहते हैं ?
उत्तर - जहाँ असि (तलवार आदि शस्त्र), मसि (स्याही अर्थात् लिखने पढ़ने का कार्य), कृषि (खेती आदि शारीरिक परिश्रम) के द्वारा मनुष्य अपना निर्वाह करते हैं उसे कर्मभूमि कहते हैं। इसके १५ भेद हैं।
प्रश्न - कर्मभूमि के पन्द्रह भेद कौन-कौन से हैं ?
उत्तर - पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह कुल १५ कर्म-भूमियाँ हैं। इनमें से एक भरत, एक ऐरवत और एक महाविदेह ये तीन क्षेत्र जम्बूद्वीप में हैं। दो भरत, दो ऐरवत और दो महाविदेह ये छह क्षेत्र धातकी खण्ड द्वीप में हैं। दो भरत, दो ऐरवत और दो महाविदेह ये छह क्षेत्र अर्द्ध पुष्कर द्वीप में हैं। पन्द्रह कर्म भूमि में ही तीर्थंकर, चक्रवर्ती, साधु-साध्वी आदि होते हैं।
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