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विवेचन प्रश्न अन्तरद्वीप किसे कहते हैं ?
उत्तर- ऐसा नगर जो पानी के बीच में आया हो अर्थात् जिसके चारों तरफ पानी हो ऐसे नगर
को अन्तरद्वीप (टापू) कहते हैं ।
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प्रज्ञापना सूत्र
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प्रश्न - अन्तरद्वीप २८ होते हैं या ५६ होते हैं ?
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उत्तर - अन्तरद्वीप ५६ होते हैं २८ नहीं । यहाँ पर जो २८ अन्तरद्वीप बताये गये हैं, वह २८ नामों की अपेक्षा समझना चाहिये । चुल्लहिमवन्त पर्वत की विदिशाओं में लवण समुद्र में २८ अन्तरद्वीप आये हुए है तथा शिखरी पर्वत की विदिशाओं में लवण समुद्र में २८ अन्तरद्वीप आये हुए हैं। दोनों मिलाकर ५६ की संख्या होने पर भी नाम दोनों तरफ २८-२८ समान होने से यहाँ पर २८ अन्तर द्वीप बताये गये हैं ।
प्रश्न - छप्पन अंतरद्वीप के क्षेत्र कहां है और कौन-कौन से कहे गये हैं ?
उत्तर - लवण समुद्र के भीतर होने से इनको अंतरद्वीप कहते हैं । उनमें रहने वाले मनुष्यों को अन्तरद्वीपिक या अन्तरद्वीपज कहते हैं। जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र और हैमवत क्षेत्र की मर्यादा करने वाला चुल्लहिमवान पर्वत है। वह पर्वत पूर्व और पश्चिम में लवण समुद्र को स्पर्श करता है। उस पर्वत कें पूर्व और पश्चिम के चरमान्त से चारों विदिशाओं (ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य) में लवण समुद्र में तीन सौ - तीन सौ योजन जाने पर प्रत्येक विदिशा में एकोरुक आदि एक-एक द्वीप आता है। वे द्वीप गोल हैं। उनकी लम्बाई चौड़ाई तीन सौ तीन सौ योजन की है। परिधि प्रत्येक की ९४९ योजन से कुछ कम है । इन द्वीपों से चार सौ - चार सौ योजन लवण समुद्र में जाने पर क्रमश: पांचवां, छठा, सातवां और आठवां द्वीप आते हैं। उनकी लम्बाई चौड़ाई चार सौ चार सौ योजन है। इसी प्रकार इन से आगे क्रमशः पांच सौ, छह सौ, सात सौ आठ सौ, नव सौ योजन जाने पर क्रमशः चार-चार द्वीप आते रहते हैं इनकी लम्बाई चौड़ाई पांच सौ से लेकर नव सौ योजन तक क्रमशः जाननी चाहिये। ये सभी गोल हैं । तिगुनी से कुछ अधिक परिधि है । इस प्रकार चुल्लहिमवान पर्वत की चारों विदिशाओं में अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं।
नोट - जीवाजीवाभिगम और पण्णवणा आदि सूत्रों की टीका में चुल्लहिमवान् और शिखरी पर्वत की चारों विदिशाओं में चार-चार दाढाएं बतलाई गई हैं उन दाढाओं के ऊपर अन्तरद्वीपों का होना बतलाया गया है किन्तु यह बात सूत्र के मूल पाठ से मिलती नहीं है क्योंकि इन दोनों पर्वतों की जो लम्बाई आदि बतलाई गई है वह पर्वत की सीमा तक ही आई है। उसमें दाढाओं की लम्बाई आदि नहीं बतलाई गई है। यदि इन पर्वतों की दाढाएं होती तो उन पर्वतों की हद लवण समुद्र में भी बतलाई जाती । लवण समुद्र में भी दाढाओं का वर्णन नहीं है। इसी प्रकार भगवती सूत्र के मूल पाठ में तथा टीका में भी दाढ़ाओं का वर्णन नहीं है। ये द्वीप विदिशाओं में टेढे टेढे आये हैं। इन 'टेढे टेढे' शब्दों को
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