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________________ ********** प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना कि थूक मूच्छिम मनुष्य उत्पन्न नहीं होते हैं। बल्कि थूक तो आयुर्वेद में अमी (अमृत) बतलाया गया है । अत: थूक में सम्मूच्छिम मनुष्यों की उत्पत्ति मानना मिथ्या है। प्रश्न- क्या मनुष्यों के पसीने में सम्मूच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - नहीं। मनुष्यों के पसीने में सम्मूच्छिम मनुष्य पैदा नहीं होते हैं किन्तु जूँ, लीख आदि तेइन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति कभी होने की सम्भावना रहती है, हमेशा नहीं । प्रश्न- क्या तिर्यंच के मलमूत्र आदि में सम्मूच्छिम मनुष्य उत्पन्न हो सकता है ? उत्तर - नहीं। क्योंकि उपरोक्त मलमूत्र आदि सभी स्थान मनुष्य के गिने गये हैं तिर्यंच के नहीं । तिर्यंच के मल मूत्र आदि सड़ जाने पर उनमें लट गिण्डोला आदि बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरेन्द्रिय असन्नी तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव उत्पन्न हो सकते हैं। किन्तु संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच उत्पन्न नहीं हो सकता है। से किं तं गब्भवक्द्वंतिय मणुस्सा ? गब्भवक्कंतिय मणुस्सा तिविहा पण्णत्ता । तंजा - कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा, अंतरदीवगा ।। ६० ॥ भावार्थ - प्रश्न गर्भज मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? ११३ 台南南海**樂未来安常常常出常事 उत्तर - गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. कर्मभूमक (कर्मभूमिज) २. अकर्मभूमक (अकर्मभूमिज ) और ३ अन्तरद्वीपक (अन्तरद्वीपज) । से किं तं अतंरदीवगा? अंतरदीवगा अट्ठावीसइविहा पण्णत्ता । तंजहा - १ एगोरुया, २ आभासिया, ३ वेसाणिया, ४ गंगोलिया, ५ हयकण्णा, ६ गयकण्णा, ७ गोकण्णा, ८ सक्कुलिकण्णा ९ आयंसमुहा, १० मेंढमुहा, ११ अयोमुहा, १२ गोमुहा, १३ आसमुहा, १४ हत्थिमुहा, १५ सीहमुहा, १६ वग्घमुहा, १७ आसकण्णा, १८ हरिकण्णा, १९ अकण्णा, २० कण्णपाउरणा, २१ उक्कामुहा, २२ मेहमुहा, २३ विज्जुमुहा, २४ विज्जुदंता, २५ घणदंता, २६ लट्ठदंता, २७ गूढदंता, २८ सुद्धदंता । सेतं अंतरदीवगा ॥ ६१॥ Jain Education International -- भावार्थ - प्रश्न अन्तरद्वीपक (अन्तरद्वीपज) मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - अन्तरद्वीपक मनुष्य अट्ठाईस प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं १. एकोरुक २. आभासिक ३. वैषाणिक ४. नांगोलिक ५. हयकर्ण ६. गजकर्ण ७. गोकर्ण ८. शष्कुलिकर्ण ९. आदर्शमुख १०. मेण्ढमुख ११. अयोमुख १२. गोमुख १३. अश्वमुख १४. हस्तिमुख १५ सिंहमुख १६. व्याघ्रमुख १७. अश्वकर्ण १८. सिंहकर्ण १० अकर्ण २०. कर्ण प्रावरण २१. उल्कामुख २२. मेघमुख २३. विद्युन्मुख २४ विद्युद्दन्त २५. घनदन्त २६. लष्टदन्त २७. गूढदन्त २८. शुद्ध दन्त । यह अन्तरद्वीप मनुष्यों का वर्णन हुआ। - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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