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प्रज्ञापना सूत्र
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बय्यालीस दोष से दूषित आहार पानी न आ जाय? किन्तु बय्यालीस दोष वर्जित एषणीय शुद्ध आहार पानी ग्रहण करके अपना संयम निर्वाह करना चाहिए।
मनुष्य जीव प्रज्ञापना से किं तं मणुस्सा? मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - संमुच्छिम मणुस्सा य गब्भवतिय मणस्सा य॥५८॥
भावार्थ - प्रश्न - मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - मनुष्य दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं-१. सम्पूछिम मनुष्य और २. गर्भज मनुष्य। विवेचन - प्रश्न - मनुष्य किसे कहते हैं ?
उत्तर - मनुष्य के लिये दो शब्दों का प्रयोग होता है। यथा - मणुज (मनुज) और मणुस्स। इसकी . व्युत्पत्ति इस प्रकार की है 'मनोर्जातो मनुजः'। 'मनुरिति मनुष्यस्य संज्ञा'। मनोरपत्यानि मनुष्याः।
. मनु अर्थात् मनुष्य की सन्तति को मनुष्य कहते हैं । यह तो व्युत्पत्ति मात्र है। तात्पर्यार्थ तो यह है कि मनुष्य गति नाम कर्म के उदय से जिस जीव ने मनुष्य गति में जन्म लिया है उसको मनुष्य कहते हैं।
प्रश्न - किन कारणों से जीव मनुष्य गति में जन्म लेता है ? उत्तर - ठाणाङ्ग सूत्र के चौथे ठाणे के चौथे उद्देशक में इस प्रकार पाठ आया है -
"चउहिं ठाणेहिं जीवा मणुस्सत्ताए कम्मं पगरेंति तंजहा पगइभद्दयाए पगइविणीययाए साणुक्कोसयाए अमच्छरियाए।"
अर्थात् - १. प्रकृति की भद्रता (सरलता), २. स्वभाव से विनीतता (विनीत), ३. दया और अनुकम्पा के परिणामों वाला ४. मत्सर (इर्षा) डाह जलन न करने वाला। इन चार कारणों से जीव मनुष्य गति का आयुष्य बान्ध कर मनुष्य गति में जन्म लेता है।
से किं तं समुच्छिम मणुस्सा? कहि णं भंते! संमुच्छिम मणुस्सा संमुच्छंति ?, गोयमा! अंतो मणुस्सखेत्ते पणयालीसाए जोयणसयसहस्सेसु, अड्ढाइजेसु दीवसमुद्देसु, पण्णरससु कम्मभूमिसु, तीसाए अकम्मभूमिसु, छप्पण्णाए अंतरदीवएसु गब्भवक्वंतिय मणुस्साणं चेव उच्चारेसु वा, पासवणेसु वा, खेलेसु वा, सिंघाणएसु वा, वंतेसु वा, पित्तेसु वा, पूएसु वा, सोणिएसु वा, सुक्केसु वा, सुक्कपुग्गलपरिसाडेसु वा, विगयजीवकलेवरेसु वा, थीपुरिससंजोएसु वा, णगरणिद्धमणेसु वा, सव्वेसु चेव असुइट्ठाणेसु, एत्थ णं समुच्छिम मणुस्सा संमुच्छंति, अंगुलस्स असंखिजइ भागमेत्ताए ओगाहणाए। असण्णी मिच्छदिट्ठी (अण्णाणी) सव्वाहिं पजत्तीहिं अपजत्तगा अंतोमुहुत्ताउया चेव कालं करेंति। से तं समुच्छिम मणुस्सा॥५५॥
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