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फैले हुए रहते हैं ।
प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना
ही रहते हैं। उन्हें वितत पक्षी कहते हैं । उनके पंख बैठते समय भी बन्द नहीं होते। खुले ही
प्रश्न- उपरोक्त चारों प्रकार के पक्षी कहाँ होते हैं ?
उत्तर - अढाई द्वीप और दो समुद्र रूप मनुष्य लोक है। इसमें चर्मपक्षी और रोम (लोम) पक्षी ये दोनों जाति के पक्षी मनुष्य लोक में होते हैं। समुद्गक पक्षी और विततपक्षी ये दोनों जाति के पक्षी मनुष्य लोक में नहीं होते हैं । अढाईद्वीप के बाहर चर्मपक्षी, रोमपक्षी, समुद्गक पक्षी और वितत पक्षी ये चारों जाति के पक्षी होते हैं। निष्कर्ष यह है कि मनुष्य लोक में सिर्फ दो जाति के पक्षी होते हैं और मनुष्य लोक के बाहर चारों जाति के पक्षी होते हैं ।
प्रश्न- भारण्डपक्षी किसे कहते हैं ?
उत्तर - " अभिधान राजेनेद्र कोष' भाग पांच पृष्ठ नं. १४९१ में "भारण्ड" शब्द की व्याख्या इस प्रकार दी है - ‘“भारण्डपक्षिणोः किल एकं शरीरं पृथग् ग्रीवं त्रिपादं च भवति, तौ च अत्यन्त अप्रमत्ततया एव निर्वाहं लभेते इति भारण्डः ।"
(ठाणाङ्ग ९)
एकोदराः पृथग्ग्रीवाः, अन्योन्य फलभक्षिणः । प्रमत्ता इव नश्यन्ति, यथा भारण्डपक्षिणः ॥
एकोदराः पृथग्ग्रीवाः त्रिपादा मर्त्यभाषिणः ।
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भाण्डपक्षिणः तेषां मृतिर्भिन्नफलेच्छया ॥
"भारण्डपक्षिणः जीवद्वयरूपा भवन्ति, ते च सर्वदा चकितचित्ता भवन्ति इति । "
अर्थात् - भारण्ड पक्षी का एक शरीर होता है और उसमें दो जीव होते हैं वे हमेशा अप्रमत्त रह कर एवं चकित - चकित की तरह सावधान होकर जीवन निर्वाह करते हैं अर्थात् आहार पानी लेते हैं । यही बात दोनों श्लोकों में कही गयी है कि उनके पेट एक होता है, पैर तीन होते हैं, मनुष्यों की तरह भाषा बोलते हैं। दो गर्दन (गला) होती हैं और दो ही मुख होते हैं। एक मुख से अमृत फल खाता है तो दूसरा मुख इर्षालु बन कर जहरीला फल खा लेता है इस तरह उन दोनों की मृत्यु एक साथ हो जाती है।
यह उपरोक्त मान्यता टीकाकार की है। किन्तु पूर्वाचार्य बहुश्रुत मुनिराज तो ऐसा फरमाते हैं कि यह एक ही जीव होता है किन्तु उसके शरीर की रचना उपरोक्त प्रकार से होती है। उसमें दो जीव रूप उन्नीस प्राण नहीं होते हैं किन्तु एक जीव के अनुसार दस प्राण ही होते हैं।
भाण्ड पक्षी की उपमा मुनि को दी गयी है कि जिस प्रकार भारण्डपक्षी हर वक्त सावधान रहता है और सावधान रह कर ही अन्न पानी ग्रहण करता है इसी प्रकार मुनिराज को भी संयम में हर समय सावधानी रखनी चाहिए और आहार पानी में भी सावधानी रखनी चाहिए कि कहीं उद्गम आदि
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