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प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना
भावार्थ - प्रश्न - सम्मूच्छिम मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं? हे भगवन् ! सम्मूच्छिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर ४५ लाख योजन परिमाण क्षेत्र में ढाईद्वीप और समुद्रों में, पन्द्रह कर्मभूमियों में तीस अकर्मभूमियों में एवं ५६ अन्तरद्वीपों में गर्भज मनुष्यों के १. उच्चारों (विष्ठाओं) २. प्रस्रवणों (मूत्रों) में ३. कफों में ४. सिंघाण - नाक के मैलों में ५. वमनों में ६. पित्तों में ७ मवादों में ८. रक्तों में ९. शुक्रों-वीर्यों में १०. पहले सूखे हुए शुक्र के पुद्गलों को गीला करने में ११. मरे हुए जीवों के कलेवरों में १२. स्त्री-पुरुष के संयोगों में १३. नगर की गटरों या मोरियों में तथा १४. सभी अशुचि स्थानों में सम्मूच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं। इन सम्मूच्छिम मनुष्यों की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र की होती है। ये असंज्ञी, मिथ्यादृष्टि, अज्ञानी एवं सभी पर्याप्तियों से अपर्याप्त होते हैं और अन्तर्मुहूर्त आयु भोग कर काल करते हैं। यह सम्मूच्छिम मनुष्यों का वर्णन हुआ।
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विवेचन - प्रश्न सम्मूच्छिम मनुष्य किसे कहते हैं ?
उत्तर - बिना माता पिता के उत्पन्न होने वाले अर्थात् स्त्री पुरुष के समागम के बिना ही उत्पन्न होने वाले जीव सम्मूच्छिम कहलाते हैं । ४५ लाख योजन परिमाण मनुष्य क्षेत्र में ढाई द्वीप और दो समुद्रों में पन्द्रह कर्म भूमि, तीस अकर्मभूमि और ५६ अंतरद्वीपों में गर्भज मनुष्य रहते हैं । उनके मल मूत्रादि में सम्मूच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं।
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प्रश्न- सम्मूच्छिम मनुष्य के उत्पन्न होने के कितने और कौन-कौन से स्थान हैं ?
उत्तर - सम्मूच्छिम मनुष्य के उत्पन्न होने के चौदह स्थान हैं - १. उच्चारेसु - उच्चार (विष्ठा ) में २. पासवणेसु - मूत्र में ३. खेलेसु - खेंखार में ४. सिंघाणेसु - नाक का मैल (श्लेष्म) में ५. वंतेसुवमन में ६. पित्तेसु - पित्त में ७. सोणिएसु - रुधिर में ८. पूएसु - परु (पीप) में ९. सुक्केसु - पुरुष के वीर्य और स्त्री के रज में १०. सुक्कपुग्गल परिसाडिएसु - पहले सूखे हुए शुक्र के पुद्गलों के गीला होने में अथवा उपरोक्त सभी बोलों के सूखे हुए पुद्गलों में ११ इत्थीपुरिस संजोगेसु - स्त्री-पुरुष के संयोग में १२. विगयजीवकलेवरेसु - मनुष्य के कलेवर (शव) में १३. नगर निधमणेसुनगर की गटरों (मोरियों) में १४. सव्वेसु चेव असुइठाणेसु मनुष्य के सभी अशुचि के स्थानों में । प्रश्न- क्या संमूच्छिम मनुष्य अपने को दिखाई देते हैं ?
उत्तर - नहीं, वे इतने सूक्ष्म हैं कि चर्म चक्षुओं से नहीं देखे जा सकते।
प्रश्न - चौदह स्थानों में उत्पन्न होने वाले सम्मूच्छिम मनुष्यों की स्थिति (आयु) और अवगाहना . कितनी होती है ?
उत्तर - चौदह स्थानों में एक अंतर्मुहूर्त में सम्मूच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं । इनकी अवगाहना
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