________________
३२५०
भगवमी सूत्र-श. २५ उ. ३ श्रेणी निरूपण
वसियाओ-पुच्छा।
५० उत्तर-गोयमा ! साइयाओसपज्जवसियाओ, णो साइयाओ अपज्जवसियाओ, णो अणाइयाओ सपज्जवसियाओ, णो अणाइयाओ अपज्जवसियाओ। एवं जाव उइदमहाययाओ।
भावार्थ-५० प्रश्न-हे भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ क्या सादिसपर्यवप्तित हैं. ?
५० उत्तर-हे गौतम ! सादि-सपर्यवसित हैं, किन्तु सादि-अपर्यवसिल नहीं, अनादि-प्सपर्यवसिल नहीं और अनादि-अपर्यवसित भी नहीं हैं । इस प्रकार यावत् ऊर्ध्व और अधो लम्बी लोकाकाश श्रेणियाँ भी जाननी चाहिए।
५१ प्रश्न-अलोगागाससेढीओणं भंते ! किं साइयाओ०-पुच्छा?
५१ उत्तर-गोयमा ! १ सिय साइयाओ सपज्जवसियाओ २ सिय साइयाओ अपज्जवसियाओ ३ सिय अणाइयाओ सपजवसियाओ ४ सिय अणाइयाओ अपजवसियाओ । पाईणपडीणाययाओ दाहिशुतराययाओ य एवं चेव । णवरं णो साइयाओ सपज्जवसियाओ, सिय साइयाओ अपजवसियाओ, सेसं तं चेव । उड्ढमहाययाओ जहा ओहियाओ तहेव चउभंगो ।
भावार्थ-५१ प्रश्न-हे भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियां सादि-सपर्यवसित है?
५१ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् सादि-सपर्यवसित हैं, कदाचित् सादिअपर्यवसित हैं, कदाचित् अनादि-सपर्यवसित हैं और कदाचित् अनादि-अपर्यवसित हैं। पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा दक्षिण-उत्तर लम्बी श्रेणियां भी इसी प्रकार, किंतु वे सादि-सपर्यवसित नहीं हैं। कदाचित् सादि-अपर्यवसित है, शेष पूर्ववत् । ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणियों के विषय में औधिक कथित चार भंग जानना चाहिये।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org