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________________ भगवती सूत्र-ग. २५ उ. ३ श्रेणी निरूपण ३२४६ की नहीं, असंख्यात प्रदेश की ही हैं। ___ अलोकाकाश की संख्यात और असंख्यात प्रदेश की जो श्रेणियाँ कही हैं, वे लोक मध्यवर्ती क्षुल्लक प्रतर के पास में आई हुई ऊर्ध्व-अधो लम्बी, अधोलोक की श्रेणियों की अपेक्षा समझना चाहिये । इनमें से प्रारम्भ की श्रेणियाँ संख्यात प्रदेशी हैं और उसके बाद को श्रेणियाँ असंख्यात प्रदेशो हैं । तिरछी लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियाँ तो निश्चित रूप से अनन्त प्रदेशी ही हैं। ४९ प्रश्न-सेदीओ णं भंते ! १ कि साइयाओ सपज्जवसियाओ २ साइयाओ अपजवप्सियाओ ३. अणाइयाओ सपजवसियाओ ४ अणाइयाओ अपजवसियाओ ? ४९ उत्तर-गोयमा ! णो साइयाओ सपनवसियाओ, णो साइ. याओ अपज्जवसियाओ, णो अणाइयाओ सपज्जवसियाओ, अणाइयाओ अपजवसियाओ। एवं जाव उड्ढमहाययाओ। कठिन शब्दार्थ--साइयाओ-आदि-प्रारंभयुक्त, सपज्जवसियाओ--सपर्यवसितअन्त सहित । .. भावार्थ-४९ प्रश्न-हे भगवन् ! श्रेणियां सादि-सपर्यवसित (आदि और अन्त सहित) हैं, सादि अपर्यवसित (आदि सहित और अन्त रहित) हैं, अनादिसपर्यवसित (आदि रहित और अन्त सहित) हैं, अनादि-अपर्यवसित (आदि और अन्त रहित) हैं ? ४९ उत्तर-हे गौतम ! सादि-सपर्यवसित नहीं, सादि-अपर्यवसित नहीं और अनादि-सपर्यवसित भी नहीं हैं किन्तु अनादि-अपर्यवसित हैं। इस प्रकार * यावत् ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिये। ५० प्रश्न-लोगागाससेदोओ णं भंते ! किं साइयाओ सपज्ज Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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