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भगवती सूत्र-ग. २५ उ. ३ श्रेणी निरूपण
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की नहीं, असंख्यात प्रदेश की ही हैं।
___ अलोकाकाश की संख्यात और असंख्यात प्रदेश की जो श्रेणियाँ कही हैं, वे लोक मध्यवर्ती क्षुल्लक प्रतर के पास में आई हुई ऊर्ध्व-अधो लम्बी, अधोलोक की श्रेणियों की अपेक्षा समझना चाहिये । इनमें से प्रारम्भ की श्रेणियाँ संख्यात प्रदेशी हैं और उसके बाद को श्रेणियाँ असंख्यात प्रदेशो हैं । तिरछी लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियाँ तो निश्चित रूप से अनन्त प्रदेशी ही हैं।
४९ प्रश्न-सेदीओ णं भंते ! १ कि साइयाओ सपज्जवसियाओ २ साइयाओ अपजवप्सियाओ ३. अणाइयाओ सपजवसियाओ ४ अणाइयाओ अपजवसियाओ ?
४९ उत्तर-गोयमा ! णो साइयाओ सपनवसियाओ, णो साइ. याओ अपज्जवसियाओ, णो अणाइयाओ सपज्जवसियाओ, अणाइयाओ अपजवसियाओ। एवं जाव उड्ढमहाययाओ।
कठिन शब्दार्थ--साइयाओ-आदि-प्रारंभयुक्त, सपज्जवसियाओ--सपर्यवसितअन्त सहित ।
.. भावार्थ-४९ प्रश्न-हे भगवन् ! श्रेणियां सादि-सपर्यवसित (आदि और अन्त सहित) हैं, सादि अपर्यवसित (आदि सहित और अन्त रहित) हैं, अनादिसपर्यवसित (आदि रहित और अन्त सहित) हैं, अनादि-अपर्यवसित (आदि और अन्त रहित) हैं ?
४९ उत्तर-हे गौतम ! सादि-सपर्यवसित नहीं, सादि-अपर्यवसित नहीं और अनादि-सपर्यवसित भी नहीं हैं किन्तु अनादि-अपर्यवसित हैं। इस प्रकार * यावत् ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिये।
५० प्रश्न-लोगागाससेदोओ णं भंते ! किं साइयाओ सपज्ज
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