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भगवती सूत्र-श. २५ उ ३ श्रेणी निरूपण .
अनन्त हैं । इस प्रकार दक्षिण-उत्तर लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिये।
४८ प्रश्न-उड्ढमहाययाओ-पुच्छा ?
४८ उत्तर-गोयमा ! सिय संखेजाओ, सिय असंखेजाओ, सिय अणंताओ।
भावार्थ-४८ प्रश्न-हे भगवन् ! ऊर्ध्व और अधो लम्बी अलोकाकांश की श्रेणियां प्रदेशार्थ से संख्यात हैं. ?
४८ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त हैं।
विवेचन--यद्यपि पंक्ति मात्र को 'श्रेणी' कहते हैं, तथागि यहाँ आकाश-प्रदेश की पंक्तियां श्रेणी शब्द से कही है । श्रेणी के सामान्यत: चार भेद होते हैं । यथा-लोकालोक की विवक्षा किये बिना सामान्य श्रेणी, पूर्व और पश्चिम लम्बी श्रेणी, दक्षिण और उत्तर लम्बी श्रेणी और ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणी। इस प्रकार लोक सम्बन्धी चार और अलोक 'सम्बन्धी चार श्रेणियाँ होती हैं । सामान्य आकाशास्तिकाय की श्रेणियाँ अनन्त है और लोकाकाश की श्रेणियाँ असंख्यात । क्योंकि लोकाकाश असंख्यात प्रदेशात्मक ही है । अलोकाकाश की श्रेणियाँ अनन्त हैं, क्योंकि अलोकाकाश अनन्त प्रदेशात्मक है।
___ लोकाकाश की पूर्व-पश्चिम लम्बी और उत्तर-दक्षिण लम्बी श्रेणियाँ संख्यात प्रदेश रूप हैं । इस विषय में चूर्णिकार का कथन है कि वृत्ताकार लोक के दन्तक जो अलोक में गये हुए हैं, उनकी श्रेणियाँ संख्यात प्रदेशात्मक हैं और अन्य श्रेणियाँ असंख्यात प्रदेशात्मक हैं। प्राचीन टीकाकार ने इस विषय में शंका-समाधान पूर्वक कथन किया है और निष्कर्ष निकालते हुए कहा है कि लोकाकाश वृत्ताकार होने से पर्यन्तवर्ती श्रेणियां संख्यात प्रदेश की हैं, अनन्त नहीं, क्योंकि लोकाकाश के प्रदेश अनन्त नहीं है । - लोकाकाश की ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणी असंख्यात प्रदेश की है, संख्यात या अनन्त प्रदेश की नहीं है । अधोलोक के कोण से अथवा ब्रह्म देवलोक के तिरछे प्रान्त भाग से जो श्रेणियाँ निकली हैं, वे भी इस सूत्र के कथन से संख्यात प्रदेश की या अनन्त प्रदेश
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