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________________ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ३ संस्थान के प्रदेश चैव, उड्ढमहाययाओ णो संखेजाओ, असंखेजाओ, णो अनं ', ताओ । भावार्थ - ४५ प्रश्न - हे भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियां प्रदेशार्थ से संख्यात हैं ० ? ४५ उत्तर - हे गौतम! कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात प्रदेश हैं, किन्तु अनन्त नहीं । इसी प्रकार पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तरदक्षिण लम्बी श्रेणियां भी हैं । ऊर्ध्व-अधो लम्बी लोकाकाश की श्रेणियां संख्यात नहीं और अनन्त भी नहीं, किन्तु असंख्यात हैं । ३२४७ ४६ प्रश्न - अलोगागाससेढीओ गं भंते ! परसट्टयाए - पुच्छा ? ४६ उत्तर - गोयमा ! सिय संखेजाओ, सिय असंखेज्जाओ, सिय अनंताओ । भावार्थ - ४६ प्रश्न - हे भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थ से संख्यात हैं० ? ४६ उत्तर - हे गौतम! कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त हैं । ४७ प्रश्न - पाईणपडीणाययाओ णं भंते ! अलोगा ० - पुच्छा ? ४७ उत्तर - गोयमा ! णो संखेज्जाओ, णो असंखेज्जाओ, अणंताओ । एवं दाहिणुत्तराययाओ वि । भावार्थ - ४७ प्रश्न - हे भगवन् ! पूर्व-पश्चिम लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियां प्रदेशार्थ से संख्यात है० ? ४७ उत्तर - हे गौतम! संख्यात नहीं और असंख्यात मी नहीं, किन्तु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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