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________________ ३२४६ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ३ संस्थान के प्रदेश संखेज्जाओ, असंखेजाओ, अनंताओ ? ४३ उत्तर - गोयमा ! णो संखेज्जाओ, णो असंखेजाओ, अणंताओ । एवं पाईणपडीणाययाओ वि, एवं दाहिणुत्तराययाओ वि एवं उमहाययाओ वि । भावार्थ - ४३ प्रश्न - हे भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ द्रव्यार्थ रूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? ४३ उत्तर - हे गौतम! संख्यात नहीं और असंख्यात भी नहीं, अनन्त हैं । इसी प्रकार पूर्व-पश्चिम लम्बी, दक्षिण-उत्तर लम्बी तथा ऊर्ध्व-अधो लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियां भी हैं । ४४ प्रश्न - सेढीओ णं भंते ! परसट्टयाए किं सखेज्जाओ ? ४४ उत्तर - जहा दव्वट्टयाए तहा पट्टयाए वि जाव उड्दमहाययाओ वि सव्वाओ अनंताओ । भावार्थ - ४४ प्रश्न - हे भगवन् ! आकाश की श्रेणियां प्रदेशार्थ रूप से संख्यात हैं, ० ४४ उत्तर - हे गौतम! द्रव्यार्थवत् यावत् ऊर्ध्व और अधो लम्बी सभी श्रेणियां अनन्त हैं । ४५ प्रश्न - लोगागाससेढीओ णं भंते ! परसट्टयाए किं संखेज्जाओ - पुच्छा | ४५ उत्तर - गोयमा ! सिय संखेज्जाओ, सिय असंखेजाओ, गो अनंताओ । एवं पाईणपडीणाययाओ वि, दाहिणुत्तराययाओ वि एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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