________________
भगवती सूत्र-श. २५ उ. ३ संस्थान के प्रदेश
३२४३
३८ उत्तर-गोयमा ! सिय कडजुम्मे, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ठिईए, एवं णीलवण्णपज्जवेहि, एवं पंचहिं वण्णेहिं, दोहिं गंधेहि, पंचहिं रसेहिं, अट्टहिं फासेहिं जाव लुक्खफासपज्जवेहिं ।
___ भावार्थ-३८ प्रश्न-हे भगवन् ! परिमण्डल संस्थान के काले वर्ण के पर्याय कृतयुग्म है, यावत् कल्योज हैं ?
३८ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् कृतयुग्म रूप होते हैं, इत्यादि पूर्वोक्त स्थिति पाठ के अनुसार । इसी प्रकार नीला, लाल आदि पांच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श के विषय में, यावत् रूक्ष स्पर्श पर्याय तक।
विवेचन-परिमण्डल संस्थान द्रव्न रूप से एक है । एक वस्तु में चार-चार का अपहार (भाग) नहीं होता । वह एक ही शेष रहता है । इसलिये वह कल्योज है । इस प्रकार वृत्त आदि संस्थान भी जानना चाहिये । परन्तु सामान्य रूप से यदि सभी परिमण्डल संस्थानों का विचार किया जाय, तब उनका चार-चार से अपहार करते हए, किसी समय कुछ भी शेष नहीं रहता, कदाचित् तीन, कदाचित् दो और कदाचित् एक शेष रहता है । इसलिये कदाचित् कृतयुग्म हाते है और यावत् कदाचित् कल्योज भी होते है। जब विधानादेश से अर्थात् विशेष दृष्टि से प्रत्येक संस्थान का विचार किया जाता है, तब चार .से अपहार न होने के कारण एक ही शेष रहता है । अत: वह कल्योज होता है। .
जब परिमण्डल संस्थान का प्रदेशार्थ रूप से विचार किया जाता है, तब बीस आदि । क्षेत्र प्रदेशों में जो प्रदेश परिमण्डल संस्थान रूप से व्यवस्थित होते हैं, उनकी अपेक्षा से बीस आदि प्रदेशों का कथन किया गया है। उन प्रदेशों में चार-चार का अपहार करते हुए जब चार शेष रह जाते हैं, तब कृतयुग्म होते हैं । जब तीन शेष रहते हैं, तब त्र्योज होते हैं, दो शेष रहने पर द्वापरयुग्म और एक शेष रहने पर कल्योज होता है, क्योंकि एक प्रदेश पर भी बहत-से परमाण अवगाढ होते हैं।
'अवगाह के विषय में कथन करते हए परिमण्डल संस्थान बीस प्रदेशावगाढ़ बताया गया है । बीस में चार का अपहार करते हुए चार शेष रहते हैं, अत: वह कृतया देशावगाढ़ ही होता है । इसी प्रकार आगे भी कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़, व्योज प्रदेशात - युग्म प्रदेशावगाढ़ और कल्योज प्रदेशावगाढ़ के विषय में यथायोग्य विचार करना न ये।
परिमण्डल आदि संस्थानों का पहले एक वचन सम्बन्धी विचार किया है,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org