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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ३ संस्थान के प्रदेश ३२३१ प्रदेशावगाढ़ और उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक असंख्य प्रदेशावगाढ़ होता है । युग्मप्रदेशिक श्रेणीआयत जघन्य द्विप्रदेशिक, द्विप्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है । प्रतर-आयत दो प्रकार का है ओजप्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । ओजप्रदेशिकप्रतर-आयत जघन्य पन्द्रह प्रदेश, पन्द्रह प्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है । युग्मप्रदेशिक प्रतर-आयत जघन्य छह प्रदेश, छह प्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश और असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है। घनआयत दो प्रकार का है-, ओजप्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । ओजप्रदेशिक घनआयत जघन्य पैंतालीस प्रदेश, पैंतालीस प्रदेशावगाढ़ और उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है । युग्मप्रदेशिक-घनआयत जघन्य बारह प्रदेश, बारह प्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश और असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है। २२ प्रश्न-परिमंडले णं भंते ! संठाणे कइपएसिए-पुच्छा । २२ उत्तर-गोयमा ! परिमंडले णं संठाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-घणपरिमंडले य पयरपरिमंडले य । तत्थ णं जे से पयरपरिमंडले से जहण्णेणं वीसइपएसिए वीसइपएसोगाढे, उक्कोसेणं अणंतपएसिए तहेव । तत्थ णं जे से घणपरिमंडले से जहण्णेणं चत्तालीसहपएसिए चत्तालीसपएसोगाढे पण्णत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेजपएसोगाढे पण्णत्ते । ___ भावार्थ-२२ प्रश्न-हे भगवन् ! परिमण्डल संस्थान कितने प्रदेश और कितने प्रवेशावगाढ़ कहा है ? २२ उत्तर-हे गौतम ! परिमण्डल संस्थान दो प्रकार का है-घन परिमण्डल और प्रतर परिमण्डल । प्रवर परिमण्डल जघन्य बीस प्रदेश, बीस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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