________________
श. २५ उ.३ संस्थान के प्रदेश
३२२९
पणत्ते । तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहणणेणं चउपएसिए चउ. पएसोगाढे पण्णत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए-तं चेव । तत्थ णं जे से घणचउरं से से दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य । तत्थ णं जे से ओयपएमिए से जहण्णेणं सत्तावीसइपए सिए सत्तावीसइपएसोगाढे, उक्कोसेणं अणंतपसिए तहेव । तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहणेणं अट्ठपएसिए अट्ठपएसोगाढे पण्णत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए तहेव ।
भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! चतुरस्र संस्थान कितने प्रदेश का और कितने प्रदेशावगाढ़ कहा है ?
२० उत्तर-हे गौतम ! वृत्त संस्थान के समान चतुरस्र संस्थान दो प्रकार का कहा है । यथा-घनचतुरस्र और प्रतरचतुरस्र । प्रतरचतुरस्र के दो भेद है-ओजप्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । ओजप्रदेशिक जघन्य नव प्रदेश और नव प्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है। युग्मप्रदेशिक जघन्य चतुष्प्रदेशिक और चतुष्प्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है । घनचतुरस्र दो प्रकार का कहा है । यथा-ओजप्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । ओजप्रदेशिक घनचतुरस्र जघन्य सत्ताईस प्रदेश और सत्ताईस प्रदेशावगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है । युग्मप्रदेशिक धनचतुरस्त्र जघन्य अष्ट प्रदेश और अष्ट प्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है। ___२१ प्रश्न-आयए णं भंते ! संठाणे कइपएसिए कइपएसोगाढे पण्णते ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org