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________________ ३२२८ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ३ संस्थान के प्रदेश असंखेजपएसोगाढे पण्णत्ते । तत्थ णं जे से घणतंसे से दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य । तत्थ णं जे से "ओयपएसिए से जहण्णेणं पणतीसपएसिए पणतीसपएसोगाढे, उक्कोसेणं अणंतपएसिए-तं चेव । तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहण्णेणं चउप्पएसिए, चउप्पएसोगाढे पण्णत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए-तं चेव। भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! व्यस्त्र संस्थान कितने प्रदेशिक और कितने प्रदेशावगाढ़ होता है ? १९ उत्तर-हे गौतम ! यस संस्थान दो प्रकार का कहा है। यथाधनव्यस्र और प्रतरत्र्यस्र । प्रतरत्र्यस्र दो प्रकार का कहा है । यथा-ओजप्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । ओजप्रदेशिक जघन्य तीन प्रदेश वाला और तीन प्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक भौर असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है। युग्मप्रदेशिक प्रतरत्र्यस्र जघन्य छह प्रदेशिक और छह प्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश वाला और असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है है । घनत्र्यस्र दो प्रकार का है । यथा-ओजप्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । ओजप्रदेशिक घनत्र्यस्त्र जघन्य पैंतीस प्रदेश और पैंतीस प्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है । युग्मप्रदेशिक घनश्यत्र जघन्य चतुष्प्रदेशिक और चतुष्प्रदेशावगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशावगाढ़ होता है। २० प्रश्न-चउरंसे णं भंते ! संठाणे कइपएसिए-पुच्छा। - २० उत्तर-गोयमा ! चउरं से संठाणे दुविहे पण्णत्ते, भेदो जहेव वट्टस्स जाव तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहण्णेणं णवपएसिए णवपएसोगाढे पण्णत्ते, उकोसेणं अणंतपएसिए असंखेजपएसोगाढे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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