________________ भगवती सूत्र-ग. 25 उ. 3 संस्थान पाँच 3223 11 उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत्, यावत् आयतं संस्थान तक और अच्युतकल्प पर्यन्त / 12 प्रश्न-हे भगवन् ! ग्रेवेयक विमानों में परिमण्डल संस्थान संख्यात है, इत्यादि ? 12 उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत्, अनुत्तर विमान तथा ईषत्प्रागभारा पृथ्वी पर्यन्त / विवेचन--संस्थान की प्ररूपणा इसके पूर्व भी की जा चुकी है, किंतु यहाँ रत्नप्रभादि के विषय में प्ररूपणा करने की इच्छा से पुन: संस्थान सम्बन्धी प्रश्न किया है / जिसके उत्तर में पांच संस्थानों का ही नाम निर्देश किया है। यहाँ अनित्थंस्थ संस्थान का कथन नहीं करने का कारण यह है कि वह परिमण्डल आदि दूसरे संस्थानों के संयोग से बनता है / अतः उसकी विवक्षा नहीं की गई। 13 प्रश्न-जत्थ णं भंते ! एगे परिमंडले संठाणे जवमज्झे - तत्थ परिमंडला संठाणा किं संखेजा, असंखेना, अणंता ? 13 उत्तर-गोयमा ! णो संखेजा, णो असंखेजा, अणंता / 14 प्रश्न-वट्टा णं भंते ! संठाणा किं संखेजा, असंखेना ? 14 उत्तर-एवं चेव, एवं जाव आयया। ' 15 प्रश्न-जत्थ णं भंते ! एगे वट्टे संठाणे जवमझे तत्थ परिमंडला संठाणा ? 15 उत्तर-एवं चेव, वट्टा संठागा एवं चेव, एवं जाव आयया। . एवं एक्केकेणं संठाणेणं पंच वि चारेयव्वा / कठिन शब्दार्थ-जवमो-यवमध्य, चारेयवा-विचार करना चाहिए। भावार्थ-१३ प्रश्न-हे भगवन् ! जहाँ एक यवाकार(जो के आकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org