SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती मूत्र-श. २५ उ. ३ संस्थान भेद अल्प-बहुत्व ३२१९ गुणा, तंसा संठाणा दव्वट्ठयाए संखेजगुणा, आयतसंठाणा दवट्टयाए संखेजगुणा, अणिथंथा संठाणा दवट्ठयाए असंखेजगुणा । पएसट्टयाए सबथोवा परिमंडला संठाणा पएसट्टयाए, वट्टा संठाणा पएसट्टयाए संखेजगुणा, जहा दवट्टयाए तहा पएसट्टयाए वि, जाव अणित्थंथा संठाणा पएसट्टयाए असंखेनगुणा । दवट्ट-पएसट्टयाए सव्वत्थोवा परिमंडला संठाणा दव्वट्टयाए, सो चेव गमओ भाणियव्वो, जाव अणित्थंथा संठाणा दवट्टयाए असंखेजगुणा, अणित्थंथेहितो संठाणेहिंतो दव्वट्टयाए परिमंडला संठाणा पएसट्टयाए असंखेजगुणा, वट्टा संठाणा पएसट्टयाए संखेजगुणा सो, चेव पएसट्टयाए गमओ भाणि. यब्वो जाव अणित्थंथा संठाणा पएसट्टयाए असंखेजगुणा। भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! परिमण्डल, वृत्त, त्र्यस्र, चतुरस्र, आयत और अनित्थं स्थ, इन संस्थानों में द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ रूप से कौन संस्थान किन संस्थानों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? .' ४ उत्तर-हे गौतम ! १ द्रव्यार्थ रूप से परिमण्डल संस्थान सभी से अल्प है, २ उससे वृत्त संस्थान द्रव्यार्थ रूप से संख्यात गुण है, ३ उससे चतुरस्र संस्थान द्रव्यार्थ रूप से संख्यात गुग है, ४ उससे व्यत्र संस्थान द्रव्यार्थ रूप से संख्यात गुण है, ५ उससे आयत संस्थान द्रव्यार्थ रूप से संख्यात गुण है, ६ उससे अनित्थंस्थ संस्थान द्रव्यार्थ रूप से असंख्यात गुण है । प्रदेशार्थ रूप-१ परिमण्डल संस्थान प्रदेशार्थ रूप से सभी से अल्प है, २ उससे वृत्त संस्थान प्रदेशार्थ रूप से संख्यात गुण है, इत्यादि जिस प्रकार द्रव्यार्थ रूप से कहा है, उसी प्रकार प्रदेशार्थ रूप से भी यावत् अनित्थंस्थ संस्थान प्रदेशार्थ रूप से असंख्यात गुण है पर्यंत । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy