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भगवती मूत्र-श. ४१ उ. ८५--१४०
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१ प्रश्न-सम्मदिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मणेरड्या णं भंते ! कओ उववज्जति ?
१ उत्तर-एवं जहा पढमो उद्देसओ। एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्देसगा भवसिद्धियसरिसा कायध्वा । 'सेवं भंते ।
२ प्रश्न-कण्हलेस्ससम्मदिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मणेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ? ____२ उत्तर-एए विकण्हलेस्ससरिसा चत्तारि वि उद्देसगा कायव्वा। एवं सम्मदिट्ठीसु वि भवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायव्वा । 'सेवं भंते जाव विहरइ । ८५-११२ उद्देसा समत्ता ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! राशि-युग्म में कृतयुग्म राशि सम्यग्दृष्टि नैरयिक कहां से आते हैं ?
१ उत्तर-प्रथम उद्देशक के समान यह उद्देशक भी है । ऐसे ही चारों युग्म में भवसिद्धिक के समान चार उद्देशक करना । ८५-८८ ।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! राशि-युग्म में कृतयुग्म राशि कृष्णलेश्या वाले सम्यगदष्टि नैरयिक कहां से आते हैं ?
२ उत्तर-यहां भी कृष्णलेश्या वाले के समान चार उद्देशक करना। इस प्रकार सम्यग्दृष्टि जीवों के भी मवसिद्धिक जीवों के समान अट्ठाईस उद्देशक कहना।
१ प्रश्न-मिच्छादिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मणेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ?
१ उत्तर-एवं एत्थ वि मिच्छादिट्ठीअभिलावेणं अभवसिद्धिय
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