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भगवती सूत्र-श. ४१ उ ५७-८४
एवं एएसु अट्ठावीसाए वि अभवसिद्धियउद्देसएसु मणुम्सा णेरइयगमेणं णेयव्वा । 'सेवं भंते । एवं एए वि अट्ठावीसं उद्देसगा। ४१-८४ । ५७-८४ उद्देसा समत्ता ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! कृतयुग्म राशि अभवसिद्धिक नरयिक कहां से आते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! प्रथम उद्देशक के अनुसार । विशेष में-मनुष्य और नरयिक का कथन समान जानो। शेष पूर्ववत् । ५७-६० ।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! राशि-युग्म में कृतयुग्म राशि कृष्णलेश्या वाले अभवसिद्धिक नेरयिक कहां से आते हैं ?
२ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् चार उद्देशक जानो। ६१-६४। ।
३-इसी प्रकार नीललेश्या वाले कृतयुग्म राशि अभवसिद्धिक जीवों के चार उद्देशक जानो । ६५-६८०
४-इसी प्रकार कापोतलेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक है । ६९-७२।
५-तेजोलेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों के भी ऐसे ही चार उद्देशक जानो । ७३-७६ ।
६-पद्मलेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक हैं। ७७-८०। ७-शुक्ललेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक हैं। ८१-८४।
इस प्रकार अभवसिद्धिक जीवों के ये अट्ठाईस उद्देशक होते हैं। इनमें मनुष्य का कथन नैरयिक के अमिलाप के समान जानो।
॥ इकतालीसवें शतक के ५७-८४ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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