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भगवती मूत्र-श. ४१ उ. १
१४ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक के समान असुर कुमार भी जानो। इसी प्रकार यावत् पंचेंद्रिय तिर्यच-योनिक पर्यन्त, परन्तु वनस्पतिकायिक असंख्यात अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी, यावत् वे आत्म-यश से उत्पन्न नहीं होते, आत्म-अयश से होते हैं।
१५ प्रश्न-जइ आयअजसेणं उववजंति, किं आयजसं उवजीवंति, आयअजसं उवजीवंति ?
१५ उत्तर-गोयमा ! आयजसं पि उवजीवंति, आयअजसं पि उवजीवंति।
भावार्थ-१५ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं, तो आत्मयश से जीवन चलाते हैं अथवा आत्म-अयश से ?
१५ उत्तर-हे गौतम ! वे आत्म-यश से जीवन चलाते हैं और आत्मअयश से भी।
१६ प्रश्न-जइ आयजसं उवजीवंति किं सलेस्सा, अलेस्सा ? १६ उत्तर-गोयमा ! सलेस्सा वि अलेस्सा वि ।
- भावार्थ-१६ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे आत्म-यशपूर्वक जीवन चलाते हैं, तो वे सलेशी होते हैं अथवा अलेशी ?
१६ उत्तर-हे गौतम ! वे सलेशी भी होते हैं और अलेशी भी।
१७ प्रश्न-जइ अलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया ? १७ उत्तर-गोयमा ! णो संकिरिया, अकिरिया ।
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