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________________ ३७७६ भगवती सूत्र-श. ४० अवान्तर शतक ३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ? उत्तर-हाँ, गौतम ! वे कृष्णलेश्या वाले हैं। शेष पूर्ववत् । इस प्रकार सोलह युग्म जानों। ४०-२-२। ___ इस प्रकार कृष्णलेश्या शतक में ग्यारह उद्देशक हैं। पहला, तीसरा और पांचवा, ये तीन उद्देशक एक समान हैं और शेष आठ उद्देशक एफ समान हैं। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'-- कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन--यहाँ कृष्णलेश्या का संचिढणा-काल सातवीं नरक पृथ्वी के नैरयिक की उत्कृष्ट स्थिति और पूर्वभव के अन्तिम परिणाम की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त मिला कर, अन्तमुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम होता है । ॥ चालीसवें शतक का दूसरा अवान्तर शतक सम्पूर्ण ॥ अवांतर शतक ३ . -एवं गोललेस्सेसु वि सयं । णवरं संचिटणा जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोप्सेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेजहभाग. मन्महियाइं । एवं ठिईए । एवं तिसु उद्देसएसु, सेसं तं चेव । सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति ॥ चत्तालीसहमे सए तइयं सण्णिमहाजुम्मसयं समत्तं ॥ भावार्थ-नीललेश्या वाले जीवों के भी इसी प्रकार । विशेष में-संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक बस सागरोपम। स्थिति भी इसी प्रकार समझना चाहिये। इसी प्रकार पहले, तीसरे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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