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भगवती सूत्र - श. २५ उ. २ जीव, स्थित द्रव्य ग्रहण करता है या अस्थित ३२१३
कालओ गेहइ, भावओ गेण्हइ ?
१० उत्तर - गोयमा ! दव्वओ वि गेण्डर, खेत्तओ वि गेहह, कालओ व गेहड़ भावओ वि गेहइ । ताइं दव्वओ अनंतपएसियाई दब्वाई, खेत्तओ असंखेजपरसोगाढाई एवं जहा पण्णवणाए पढमे आहारुस, जाव णिव्वाघापणं छद्दिसिं, वाघायं पटुच्च सिय तिदिसिं सिय उदिसिं सिय पंचदिसिं ।
भावार्थ - १० प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वह उन द्रव्यों को द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से ग्रहण करता है ?
१० उत्तर - हे गौतम ! वह उन द्रव्यों को द्रव्य से भी, क्षेत्र, काल और भाव से भी ग्रहण करता है । वह द्रव्य से अनन्त प्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता
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है । क्षेत्र से असंख्य प्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है। इस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र के अट्ठाईसवें पद के प्रथम आहारोद्देशक के अनुसार, यावत् निर्व्याघात से छहों दिशाओं से और व्याघात हो, तो कदाचित् तीन, कदाचित् चार और कदाचित् पाँच दिशाओं से आये हुए पुद्गलों को ग्रहण करता है ।
११ प्रश्न - जीवे णं भंते! जाई दव्वाई वेउव्वियसरीरत्ताए use ताई किं ठियाई गेण्हह, अठियाई गेण्हह ?
११ उत्तर - एवं चेव, णवरं नियमं छद्दिसिं, एवं आहारगसरीरत्ताए वि ।
भावार्थ - ११ प्रश्न - हे भगवन् ! जीव, जिन द्रव्यों को क्रिय शरीरपने ग्रहण करता है, तो क्या स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता या अस्थित द्रव्यों को ? ११ उत्तर - हे गौतम! पूर्ववत् । विशेष में जिन द्रव्यों को वैक्रिय
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