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भगवती सूत्र-श. २५ उ. २ जीव, स्थित द्रव्य ग्रहण करता है या अस्थित
कर एक स्थान पर इकट्ठा होना (एक आकाश-प्रदेश में समा जाना) 'चय' कहलाता है । वहां से पृथक् होना 'छेद' कहलाता है । स्कन्ध रूप पुद्गल, दूसरे पुद्गलों के सम्पर्क से बढ़ जाते हैं, यह 'उप वय' कहलाता है और स्कन्ध रूप पुद्गलों में से प्रदेशों के पृथक् हो जाने से वह स्कन्ध कम हो जाता है, इसे 'अपचय' कहते हैं । इन चार बातों को बताने के लिये शास्त्रकार ने चार शब्द दिये हैं, वे क्रमशः इस प्रकार हैं-'चिज्जति, छिज्जति, उचिज्जति, अवचिज्जति'।
जीव, स्थित द्रव्य ग्रहण करता है या अस्थित ..
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९ प्रश्न-जीवे णं भंते ! जाई दवाइं ओरालियसरीरत्ताए गेण्हइ ताई किं ठियाइं गेण्हइ, अठियाई गेण्हइ ?
९ उत्तर-गोयमा ! ठियाई पि गेण्हइ, अठियाइं पि गेण्हइ ।
भावार्थ-९ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव जिन पुद्गल द्रव्यों को औदारिक शरीरपने ग्रहण करता है, वह स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को?
९ उत्तर-हे गौतम ! वह स्थित द्रव्यों को भी ग्रहण करता है और अस्थित द्रव्यों को भी।
विवेचन-जितने आकाश क्षेत्र में जीव रहा हुआ है, उस क्षेत्र के अन्दर रहे हुए, जो पुद्गल द्रव्य हैं, वे 'स्थित द्रव्य' कहलाते हैं और उससे बाहर के क्षेत्र में रहे हुए पुद्गल द्रव्य अस्थित द्रव्य' कहलाते हैं। वहां से खींच कर जीव उनको ग्रहण करता है । इस विषय में किन्हीं आचार्यों का ऐसा कहना है कि जो गति रहित द्रव्य हैं, वे 'स्थित द्रव्य' कहलाते है और जो गति सहित द्रव्य हैं, वे 'अस्थित द्रव्य' कहलाते हैं।
१० प्रश्न-ताई भंते ! किं दव्वओ गेण्हइ, खेत्तओ गेण्हइ,
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