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अवान्तर शतक १ उद्देशक २-११
- १ प्रश्न-पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मवेइंदिया णं भंते ! कओ उववज्जति ?
१ उत्तर-एवं जहा एगिदियमहाजुम्माणं पढमसमयउद्देसए । दस णाणत्ताई ताई चेव दस इह वि। एकारसमं इमं णाणत्तं णो मणजोगी, णो वयजोगी, कायजोगी। सेसं जहा बेइंदियाणं चेव पढमुद्देसए । 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति । एवं एए वि जहा एगिदियमहाजुम्मेसु एकारस उद्देसगा तहेव भाणियव्वा । णवरं चउत्थ अट्ठम-दसमेसु सम्मत्त-णाणाणि ण भण्णंति । जहेव एगिदिएसु पढमो तहओ पंचमो य एकगमा सेसा अट्ठ एकगमा।
॥ छत्तीसइमे सए पढमं बेइंदियमहाजुम्मसयं समत्तं ।।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्म कृतयुग्म राशि बेइनिय जीव कहां से आते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! एकेन्द्रिय महायुग्मों का प्रथम समय सम्बन्धी उद्देशक के अनुसार । दस बातों को विशेषता यहां भी है । ग्यारहवीं विशेषता यह है कि वे मनयोगी और वचनयोगी नहीं होते, मात्र काययोगी होते हैं। शेष बेइन्द्रिय के प्रथम उद्देशक के अनुसार। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । एकेन्द्रिय महायुग्मों के ग्यारह उद्देशक के समान यहां भी कहना चाहिये, किन्तु चौथा, आठवां और दसवां, इन तीन उद्देशकों में सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होता । एकेन्द्रिय के समान पहला, तीसरा
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