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भगवती सूत्र-श. ३६ अवान्तर शतक १ उ. १
अनुसार । अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कष्ट बारह योजन । शेष वर्णन एकेन्द्रिय महायुग्म राशि के प्रथम उद्देशकवत् । किन्तु यहाँ तीन लेश्याएँ होती हैं। ये देवों से नहीं आते । सम्यग्दृष्टि और मिथ्यावृष्टि होते हैं, सम्यगमिथ्यादृष्टि नहीं होते । वे ज्ञानी अथवा अज्ञानी होते हैं। वे मनयोगी नहीं होते, किन्तु वचनयोगी और काययोगी होते हैं।
२ प्रश्न-ते णं भंते ! कडजुम्मकडजुम्मबेइंदिया कालओ केवचिरं होइ ?
२ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं संखेनं कालं । ठिई जहण्णेणं एक्कं समय, उकोसेणं बारस संवच्छराई । आहारो णियमं छदिसिं । तिण्णि समुग्घाया। सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो । एवं सोलससु वि जुम्मेसु ।
* 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति * ॥ छत्तीसइमे सए पढमे बेइंदियमहाजुम्मसए पढमो उद्देसओ समत्तो॥
___ भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! कृतयुग्मकृतयुग्म राशि बेइन्द्रिय जीव काल की अपेक्षा कितने काल तक होते हैं ?
२ उत्तर-हे गौतम! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट संख्यात काल तक होते हैं। स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह वर्ष । आहार नियम से छह दिशा का लेते हैं, पहले के तीन समुद्घात होते हैं। शेष पूर्ववत, यावत् वे अनन्त बार पहले उत्पन्न हुए हैं, तक । इस प्रकार सोलह महायुग्म होते हैं ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'-- कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। ॥छत्तीसवें शतक के प्रथम अवान्तर शतक का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण।
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