SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 606
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवांतर शतक ७ - एवं णीललेस्सभवसिद्धियए गिंदि एहि विसयं । || पणतीस मे सए सत्तमं एगिंदियमहा जुम्मसयं समत्तं ॥ भावार्थ - इसी प्रकार नीललेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय का शतक भी है। अवांतर शतक ८ - एवं काउलेस्सभवसिद्धियए गिदिएहि वि तहेव एकारसउद्देसगसंजुत्तं सयं । एवं एयाणि चत्तारि भवसिद्धियसयाणि । चउसुवि ससु सव्वे पाणा जाव उववण्णपुव्वा ? णो इणट्टे समट्टे । || पणतीसइमे सए अट्टमं एगिंदियमहाजुम्मसयं समत्तं ॥ - इसी प्रकार कापोतलेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों के भी ग्यारह उद्देशक सहित यह शतक है। ये चार शतक भवसिद्धिक जीवों के हैं । इन चारों शतक में 'सर्वप्राण यावत् पहले उत्पन्न हुए हैं ?' इस प्रश्न के उत्तर में 'यह अर्थ समर्थ नहीं है' - जानना चाहिये । अवांतर शतक ९-१२ - जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि सयाई भणियाई एवं अभवसिद्धिएहि विचत्तारि सयाणि लेस्सा संजुत्ताणि भाणियव्वाणि । सव्वे पाणा ० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy