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________________ ३७५२ भगवती सूत्र-श. ३५ अवान्तर शतक २ दूसरे उद्देशक में कही हुई अवगाहनादि की समानता घटित नहीं हो सकती । अतः नौवें उद्देशक में 'प्रथमअचरम समय कृतयुग्मकृतयुग्म एकेन्द्रियों' का कथन किया है । कृतयुग्मकृतयुग्म संख्या के अनुभव के चरम अर्थात् अन्तिम समय में वर्तमान और चरम समय अर्थात् मरणसमयवर्ती एकेंद्रियों को 'चरमचरम समय कृतयुग्मकृतयुग्म एकेंद्रिय' कहा है। इनका कथन दसवें उद्देशक में किया है। ___कृतयुग्मकृतयुग्म संख्या के अनुभव के चरम अर्थात् अंतिम समय में वर्तमान और अचरमसमय अर्थात् एकेंद्रियोत्पत्ति के प्रथम समयवर्ती एकेंद्रिय जीव 'चरमअचरम समय कृतयुग्मकृतयुग्म एकेंद्रिय' कहलाते हैं । इनका कथन ग्यारहवें उद्देशक में किया है। . पहला, तीसरा और पांचवां, इन तीन उद्देशकों का कथन समान है अर्थात् इनमें अवगाहना आदि की विशेषता का कथन नहीं है । शेष आठ उद्देशकों का कथन एक समान है। उनमें अवगाहनादि दस बातों की विशेषता है, किन्तु चौथा, आठवां और दसवां, इन तीन उद्देशकों में देवोत्पत्ति और तेजोलेश्या का कथन नहीं करना चाहिये। ॥पैंतीसवें शतक के प्रथम अवांतर शतक के ३-११ उद्देशक सम्पूर्ण ॥ ॥ प्रथम अवांतर शतक सम्पूर्ण ॥ अवांतर शतक २ १ प्रश्न-कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कओ उवधाजति ? १ उत्तर-गोयमा ! उववाओ तहेव, एवं जहा ओहिउद्देसए । णवरं इमं णाणतं-ते णं भंते ! जीवा कण्हलेस्सा ? उत्तर-हंता कण्हलेस्सा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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