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________________ भगवती सूत्र - श. ३५ अवान्तर शतक १ उ ३-११ उपपात और तेजोलेश्या का कथन नहीं करना चाहिये । विवेचन - जिनको उत्पन्न हुए द्वितीयादि समय हो गये हैं और वे संख्या में कृतयुग्मकृतयुग्म हैं, ऐसे एकेन्द्रिय जीवों को 'अप्रथम समय कृतयुग्मकृतयुग्म एकेंद्रिय' कहा गया है । इनका कथन सामान्य एकेंद्रियों के समान है । इसलिये प्रथम उद्देशक का अतिदेश किया गया है । ३७५१ 'चरमसमय' शब्द से यहाँ एकेंद्रियों का मरण समय विवक्षित है और वह उनके परभव आयु का प्रथम समय जानना चाहिये । उस समय में रहे हुए कृतयुग्मकृतयुग्म राशि केंद्रियों का कथन प्रथम समय के एकेंद्रियोद्देशक के समान है । उसमें जो दस की विशेषता बताई गई है, वह यहां भी जाननी चाहिये, परन्तु विशेषता यह है कि यहां देव उत्पन्न नहीं होते । अतएव इस उद्देशक में तेजोलेश्या का कथन नहीं करना चाहिये । एकेंद्रियों में तेजोलेश्या तभी पाई जाती है, जब उनमें देव उत्पन्न होते हैं। यहां देवों की उत्पत्ति संभव नहीं है, इसलिये तेजोलेश्या वाले एकेंद्रियों के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए | जिन एकेंद्रिय जीवों का उपर्युक्त चरम समय नहीं हैं, वे अचरमसमय कृतयुग्म कृतयुग्म एकेंद्रिय' कहे गये हैं । प्रथम समयोत्पन्न और कृतयुग्मकृतयुग्मत्व के अनुभव के प्रथम समय में वर्तमान ऐसे एकेंद्रिय जीव 'प्रथमप्रथम समय कृतयुग्मकृतयुग्म एकेंद्रिय ' कहलाते हैं । सातवें उद्देशक में प्रथम समयोत्पन्न होते हुए भी कृतयुग्मकृतयुग्म राशि का पूर्वभव में अनुभव किया हुआ होने से वे एकेन्द्रिय जीव 'प्रथमअप्रथम समय कृतयुग्मकृतयुग्म एकेंद्रिय' कहलाते हैं । यहां एकेंद्रियपने की उत्पत्ति के प्रथम समय में वर्तमान और पूर्वभव में कृतयुग्मकृतयुग्म राशि संख्या का अनुभव किया हुआ होने से इन्हें 'अप्रथम समयवर्ती केंद्र' कहा हैं । कृतयुग्मकृतयुग्म संख्या के अनुभव के प्रथम समयवर्ती और चरमसमय अर्थात् मरण समयवर्ती होने से इन्हें 'प्रथम - चरम समय कृतयुग्मकृतयुग्म एकेंद्रिय' कहा है । इनका कथन आठवें उद्देशक में किया है । Jain Education International कृतयुग्मकृतयुग्म संख्या के अनुभव के प्रथम समय में वर्तमान तथा अचरम समय अर्थात् एकेंद्रियोत्पत्ति के प्रथम समयवर्ती एकेंद्रिय जीवों को 'प्रथम- अचरम समयकृतयुग्मकृतयुग्म एकेंद्रिय' कहा है, क्योंकि इनमें चरमत्व का निषेध है। यदि ऐसा न हो, तो For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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