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________________ भगवती सूत्र - श ३५ अवान्तर शतक १ उ. ३-११ कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । विवेचन - एकेन्द्रियपने उत्पन्न हुए जिनको अभी एक समय ही हुआ है और जो कृतयुग्मकृतयुग्म राशि रूप हैं, ऐसे एकेन्द्रिय जीव को 'प्रथम समय कृतयुग्मकृतयुग्म ' एकेन्द्रिय कहते हैं । यहाँ पहले की अपेक्षा दस बातों में भिन्नता है । ये जीव प्रथम समयोत्पन्न हैं, इसलिए इनमें जो बातें सम्भवित नहीं होती, उनका अभाव है । जैसे अवगाहना प्रथम उद्देशक में बादर वनस्पति की बड़ी अवगाहना कही गई थी, किन्तु यहाँ प्रथम समयोत्पन्न होने से अवगाहना अल्प होती है। इसी प्रकार दूसरी भिन्नताएँ भी समझनी चाहिये । ॥ पैंतीसवें शतक के प्रथम अवान्तर शतक का दूसरा उद्देशक संपूर्ण ॥ स Jain Education International अवान्तर शतक १ उद्देशक ३-११ ३७४७ १ प्रश्र - अपढमसमय कडजुम्मकडजुम्मए गिंदिया णं भंते ! कओ उववज्जति ? १ उत्तर - एसो जहा पढमुद्दे सो सोलसहि वि जुम्मेसु तहेव णेयव्वो जाव कलिओगकलिओगत्ताए जाव अनंतखुत्तो ॥ ३५-१-३॥ भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! अप्रथम समय के कृतयुग्मकृतयुग्म राशि एकेन्द्रिय जीव कहां से आते हैं ? १ उत्तर - हे गौतम ! प्रथम उद्देशकानुसार इस उद्देशक में भी सोलह महायुग्मों से निरूपण करना यात्रत् कल्योजकल्योज राशि से यावत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं ।। ३५-१-३॥ १ प्रश्न- चरमसमयकडजुम्मकडजुम्मए गिंदिया णं भंते ! कभ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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