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________________ ३७४६ भगवती सूत्र-श ३५ अवान्तर शतक १ उ. २ १ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत्, प्रथम उद्देशकानुसार सोलह राशि की अपेक्षा सोलह बार पाठ के कथनपूर्वक दूनरा उद्देशक कहना । शेष पूर्ववत्, किन्तु इनमें दस नानात्व (विशेषताएँ) हैं । यथा-१ अवगाहना जघन्य अंगल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग, २ आयु-कर्म के बन्धक नहीं, भबन्धक होते हैं, ३ वे आयु.कर्म के उदीरक नहीं, अनुदीरक होते हैं, ४ बे उच्छ्वास, निःश्वास युक्त नहीं होते किन्तु नोउच्छ्वासनिःश्वास युक्त होते हैं और ५ वे सात प्रकार के कर्म-बन्धक होते हैं, आठ. प्रकार के नहीं। २ प्रश्न-ते णं भंते ! 'पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिय' त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? ____२ उत्तर-गोयमा ! एक्कं समयं । एवं ठिईए वि । समुग्घाया . आदिल्ला दोण्णि । समोहया ण पुच्छिति । उव्वट्टणा ण पुच्छिजइ । सेसं तहेव सव्वं णिरवसेसं । सोलससु वि गमएसु जाव अणंतखुत्तो। * 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ३५-१-२ * कठिन शब्दार्थ-आदिल्ला-आदि (पहले) के । भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रथम समय कृतयुग्मकृतयुग्म राशि एकेनिय जीव कितने काल तक होते हैं ? २ उत्तर-हे गौतम ! एक समय तक होते हैं। स्थिति भी यही । प्रथम के दो समुद्घात होते हैं । समवहत और उद्वर्तना असम्भव होने से प्रश्न नहीं करना । शेष सोलह महायुग्मों में उसी प्रकार यावत् 'अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं' पर्यन्त। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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