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________________ ३७३८ भगवती सूत्र-श. ३५ अवान्तर शतक १ उ. १ तेजोलेश्या वाले हैं । वे सम्यगदृष्टि और सम्यगमिथ्यादृष्टि नहीं होते, एक मिथ्यादृष्टि ही होते हैं । ज्ञानी नहीं, अज्ञानी होते हैं। उनमें नियम से दो अज्ञान-मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान होता है । वे मनोयोगी और वचनयोगी नहीं, काययोगी होते हैं । वे साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त होते हैं। १० प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरा कइवण्णा-जहा उप्पलुद्देसए सव्वत्थपुच्छा। १० उत्तर-गोयमा ! जहा उप्पलुद्देसए ऊसासगा वा, णीसासगा वा, णो उस्सासणीसासगा वा । आहारगा वा अणाहारगा वा । णो विरया, अविरया, णो विरयाविरया । सकिरिया, णोअकिरिया। सत्तविहबंधगा वा अट्ठविहबंधगा वा। आहारसण्णोवउत्ता वा जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता वा। कोहकसायी वा, माणकसायी जाव लोभकसायी वा । णोइथिवेयगा, णो पुरिसवेयगा. गपुंसगवेयगा । इत्थिवेयबंधगा वा पुरिसवेयबंधगा वा नपुंसगवेयबंधगा वा । णो सण्णी, असण्णी । सइंदिया, णो अफिदिया। भावार्थ-१० प्रश्न-हे भगवन् ! उन एकेन्द्रिय जीवों के शरीर कितने वर्ण के होते हैं, इत्यादि उत्पलोद्देशक के अनुसार सभी प्रश्न करना चाहिये । १० उत्तर-हे गौतम ! उत्पलोद्देशकानुसार । उनके शरीर पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले होते हैं। वे उच्छ्वास वाले अथवा निःश्वास वाले अथवा नो-उच्छ्वासनिःश्वास वाले होते हैं । आहारक अथवा अनाहारक होते हैं । वे विरत (सर्वविरति) और विरताविरत (वेशविरत) नहीं होते, अविरत होते हैं। वे सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं । वे सात अथवा For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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