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________________ ३७३६ भगवती सूत्र - श. ३५ अवान्तर शतक १ उ. १ णं अवहरिया सिया । उच्चत्तं जहा उप्पलुद्देसए । भावार्थ - ५ प्रश्न - हे भगवन् ! वे अनन्त जीव समय-समय में एक-एक अपहृत किये जाय, तो कितने काल में अपहृत (खाली) होते हैं ? ५ उत्तर - हे गौतम ! प्रति समय अपहृत किये जाय, और ऐसा करते हुए अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी बीत जाय, तो भी वे खाली नहीं होते (तु ऐसा किसी ने किया नहीं) । उनकी ऊँचाई उत्पलोद्देशक के अनुसार है । ६ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा णाणावर णिज्जस्स कम्मरस किं बंगा, अबंधगा ? ६ उत्तर - गोयमा ! बंधगा, णो अबंधगा । एवं सव्वेसिं आउयवजा | आउयस्स बंधगा वा अबंधगा वा । भावार्थ - ६ प्रश्न - हे भगवन् ! वे एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धक हैं या अबन्धक ? ६ उत्तर - हे गौतम! बे बन्धक हैं, अबन्धक नहीं। इसी प्रकार आयुकर्म के अतिरिक्त शेष सभी कर्मों के बन्धक हैं। आयु-कर्म के वे बन्धक भी हैं और अबन्धक भी । ७ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा णाणावर णिज्जरस - पुच्छा । ७ उत्तर - गोयमा ! वेयगा, गो अवेयगा । एवं सव्वेसिं । भावार्थ - ७ प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के वेवक हैं या अवेदक ? Jain Education International ७ उत्तर - हे गौतम! वे वेदक हैं, अवेचक नहीं। इसी प्रकार सभी कर्मों के विषय में जानना चाहिए । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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