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________________ ३७३४ भगवती सूत्र श. ३५ अवान्तर शतक १ उ. १ में से चार संख्या से अपहृत करते हुए दो बचे और उस राशि के अपहार समय द्वापरयुग्म हो, तो वह राशि द्वापरयुग्मद्वापरयुग्म' कहलाती है। १२ जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए एक और उस राशि के अपहार समय द्वापरयुग्म हो, तो वह राशि द्वापरयुग्मकल्योज' कहलाती है । १३ जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए चार बचे और उस राशि का अपहार समय कल्योज हो, तो वह राशि 'कल्योजकृतयुग्म' कहलाती है । १४ जिस राशि में से चार संख्या से अपहृत करते हुए तीन शेष रहें और उस राशि का अपहार समय कल्योज हो, तो वह राशि 'कल्योजत्र्योज' कहलाती है। १५ जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए दो बचे और उस राशि का अपहार समय कल्योज हो, तो वह राशि 'कल्योजद्वापरयुग्म' कहलाती है और १६ जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए एक बचा रहे और उस राशि का अपहार समय कल्योज हो, तो वह राशि 'कल्योजकल्योज' कहलाती है । इस कारण हे गौतम ! यावत् कल्पोजकल्योज कहा है। विवेचन - राशि (संख्या) विशेष को 'युग्म' कहते हैं। वह युग्म क्षुल्लक (छोटा) भी होता है और यहान् (बड़ा) भी होता है । इनमें से क्षुल्लक युग्म का वर्णन पहले किया जा चुका है । अब महायुग्म का वर्णन किया जाता है । जिस राशि में से प्रति समय चार-चार के अपहार से अपहृत करते हुए अन्त में चार शेष रहें और अपहार समय भी चार हों, तो वह राशि 'कृतयुग्मकृतयुग्म' कहलाती है । क्योंकि जिस द्रव्य में से अपहरण किया जाता है, वह प्रव्य भी कृतयुग्म है और अपहरण के समय भी कृतयुग्म हैं । अतः यह राशि 'कृतयुग्मकृतयुग्म' कहलाती है । इसी प्रकार दूसरी राशियां भी शम्दार्थ से जानना चाहिये । जैसे कि-१६ की संख्या जघन्य कृतयुग्मकृतयुग्म राशि रूप है, क्योंकि उसमें से चार संख्या से अपहार करते हुए अन्त में चार शेष रहते हैं और अपहार समय भी चार होते हैं । कृतयुग्मयोज-जैसे जघन्य से १९ की संख्या में से प्रतिसमय चार का अपहार करते हुए अन्त में तीन शेष रहते हैं और अपहार ममय चार होते हैं । इस प्रकार अपहरण किये जाने वाले द्रव्य की अपेक्षा बह राशि योज है और. अपहार समय की अपेक्षा 'कृतयुग्म' है । अतः इस राशि को 'कृतयुग्मत्र्योज' कहते हैं । यहाँ सभी स्थानों पर अपहारक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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