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भगवती सूत्र-श. २५ उ २ जीव, अजीव का परिभोग
३२.९
परन्तु जीव-द्रव्य, अजीव-द्रव्यों के परिभोग में नहीं आते ।
प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण है कि यावत् जीव-द्रव्य, अजीव-द्रव्यों के परिभोग में नहीं आते ?' .
उत्तर-हे गौतम ! जीव-द्रव्य, अजीव-द्रव्यों को ग्रहण करते हैं। ग्रहण कर के उनको औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस् और कार्मण---इन पांच शरीर और श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय--इन पाँच इन्द्रिय, मनयोग, वचनयोग, काययोग और श्वासोच्छ्वास में परिणमाते हैं। इस कारण अजीवद्रव्य, जीव-द्रव्यों के परिभोग में आते हैं, किन्तु जीव-द्रव्य, अजीव-द्रव्यों के परिभोग में नहीं आते।
५ प्रश्न-णेरंइयाणं भंते ! अजीवदव्वा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अजीवदवाणं णेरइया परिभोगत्ताए ?
५ उत्तर-गोयमा ! गेरइयाणं अजीवदव्या जाव हन्वमागन्छंति, णो अजीवदवाणं णेरइया हव्वमागच्छंति.। ___प्रश्न-से केणटेणं० ?
उत्तर-गोयमा ! गेरइया अजीवदव्वे परियाइयंति, अजीवदव्वे परियाइइत्ता वेउब्विय सेयग-कम्मगं सोइंदियं जाव फासिंदियं आणा. पाणुत्तं च णिव्वत्तयंति, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-एवं जाव वेमाणिया । णवरं सरीरइंदियजोगा भाणियव्वा जस्स जे अत्थि ।
भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! अजीव-द्रव्य, नैरयिकों के परिमोग में आते हैं, या नैरयिक अजीव-द्रव्यों के परिभोग में आते हैं ? .
५ उत्तर-हे गौतम ! अजीव-द्रव्य, नेरयिकों के परिभोग में आते हैं, परंतु
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