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________________ ३२०८ भगवती सूत्र-श. २५ उ. २ जीव, अजीव का परिभोग नहीं, अनन्त हैं ? उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक असंख्यात हैं यावत् वायुकायिक असंख्यात हैं और वनस्पतिकायिक अनन्त हैं। बेइन्द्रिय यावत् वैमानिक असंख्यात हे तथा सिद्ध अनन्त हैं। इस कारण यावत् जीव अनन्त हैं। जीव, अजीव का परिभोग ४ प्रश्न-जीवदव्वा णं भंते ! अजीवदव्वा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अजीवदव्वाणं जीवदव्वा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ? ४ उत्तर-गोयमा! जीवदव्वाणं अजीपदव्वा परिभोगत्ताए हन्य. मागच्छंति, णो अजीवदव्वाणं जीवदव्वा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति। ... प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जाव 'हव्वमागच्छंति' ? उत्तर-गोयमा ! जीपदव्वा णं अजीवदव्वे परियाइयंति, अजीवदव्वे परियाइइसा ओरालियं वेउब्वियं आहारगं तेयगं कम्मगं, सोइं. दियं जाव फासिंदियं, मणजोगं, वइजोगं, कायजोगं, आणापाणुत्तं च णिवत्तयंति, से तेणटेणं जाव 'हन्धमागच्छंति' ।। - कठिन शब्दार्थ- परिभोगत्ताए-परिभोग रूप से, हव्वं-शीघ्र, परियाइयंति-ग्रहण करते हैं। भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! अजीव-द्रव्य, जीव-द्रव्यों के परिभोग में आते हैं या जीव-द्रव्य, अजीव-द्रव्यों के परिभौग में आते हैं ? ४ उत्तर-हे गौतम ! अजीव-द्रव्य, जीव-द्रव्यों के परिभोग में आते हैं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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