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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. २ द्रव्य प्ररूपणा ३२०७ य अरूविअजीवदव्वा य । एवं एएणं अभिलावेणं जहा अजीवपजवा जाव से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-'ते णं णो संखेजा, णो असंखेजा, अणंता'। ३ प्रश्न-जीवदम्बा णं भंते ! किं संखेजा, असंखेजा, अणंता? ३ उत्तर-गोयमा ! णो संखेजा, णो असंखेजा, अणंता।, प्रश्न-केणटेणं भंते ! एवं वुचइ-'जीवदव्वा णं णो संखेजा, णो असंखेजा, अणंता' ? ____उत्तर-गोयमा ! असंखेजा णेरइया जाव असंखेजा वाउकाइया अणंता वणस्सइकाइया, असंखेजा बेइंदिया, एवं जाव वेमाणिया, अणंता सिद्धा, से तेणटेणं जाव 'अणंता'। . भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! द्रव्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! द्रव्य दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा-जीव-द्रव्य और अजीव-द्रव्य । . . २ प्रश्न-हे भगवन् ! अजीव द्रव्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? २ उत्तर-हे गौतम ! दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा-रूपी अजीवद्रव्य और अरूपी अजीव-द्रव्य । इस अमिलाप (सूत्रपाठ)द्वारा प्रज्ञापना सूत्र के पांचवें पद में कथित अजीव पर्यवों के अनुसार, यावत् हे गौतम ! इस कारण कहा जाता है कि अजीव-द्रव्य संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, किंतु अनन्त है। ३ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव-द्रव्य संख्यात है, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? ३ उत्तर-हे गौतम! जीव-द्रव्य संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, अनन्त हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण है कि जीव-द्रव्य संख्यात नहीं, असंख्यात Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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