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________________ ३७०२ भगवती सूत्र-श. ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति वा विग्गहेणं उववजेजा। प्रश्न-से केणटेणं ? उत्तर-अट्ठो जहेव रयणप्पभाए तहेव सत्त सेढीओ। एवं पजत्तबायरतेउकाइयत्ताए वि । वाउकाइएसु वणस्सइकाइपसु य जहा पुढवि. काइएसु उववाइओ तहेव चउकएणं . भेदेणं उववाएयव्यो । एवं पजत्तवायरतेउकाइओ वि एएसु चेव ठाणेसु उववाएयवो । वाउकाइयः वणस्सइकाइयाणं जहेव पुढविकाइयत्ते उववाओ तहेव भाणियव्यो । भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव मनुष्य-क्षेत्र में मरण-समुद्घात कर के मनुष्य क्षेत्र में अपर्याप्त बादर तेजस्कायिकपने उत्पन्न हो, तो कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? १९ उत्तर-हे गौतम ! एक, दो या तीन समय की विग्रहगति से । प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण है कि यावत् तीन समय० ? उत्तर-हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी में जैसे सात श्रेणी रूप हेतु कहा, वही यहां भी जानो। इसी प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिकपने भी। जिस प्रकार पृथ्वीकायिक में उपपात कहा, उसी प्रकार वायुकायिक और वनस्पति. कायिक जीव में भी चार-चार भेद से उपपात जानना चाहिये । इसी प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव का उपपात भी इन्हीं स्थानों में जानो। जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीव का उपपात कहा, उसी प्रकार वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीव का उपपात भी कहना चाहिये। २० प्रश्न-अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! उड्ढलोगखेत्तणालए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए अहेलोग. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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