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________________ भगवती मूत्र-श ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति ३७०३ खेत्तणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपजत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कहसमएणं० ? २० उत्तर-एवं । भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, ऊर्ध्वलोक क्षेत्र को प्रसनाड़ी के बाहर के क्षेत्र में मरण-समुद्घात कर के अधोलोक क्षेत्र की सनाड़ी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? . २० उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । २१-उड्ढलोगखेत्तणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहयाणं अहेलोगखेतणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते उववजयाणं सो चेव गमओ गिरवसेसो भाणियव्वो जाव बायर-वणस्सहकाइओ पजत्तओ बायर वणस्सइकाइएसु पजत्तएसु उववाइओ। . भावार्थ-२१-ऊर्ध्वलोक क्षेत्र की सनाड़ी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात कर के अधोलोक क्षेत्र को प्रसनाड़ी के बाहर के क्षेत्र में उत्पन्न होने के योग्य पृथ्वीकायिकादि के लिए भी वही सम्पूर्ण गमक यावत् पर्याप्त बावर वनस्पतिकायिक जीव का उपपात पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीव में भी जानो। २२ प्रश्न-अपजत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चेव चरिमंते अपजत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते कहसमइएणं विग्रहेणं उववजह ? . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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