________________
भगवती गूप-श. ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति
३७.१
मनुष्यक्षेत्र में मरण-समुद्घात कर के ऊवलोक क्षेत्र की त्रसनाड़ी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न हो, तो कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
१७ उत्तर-हे गौतम ! दो, तीन, या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।
प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया कि यावत् चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
उत्तर-हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी में सात श्रेणी आदि का जो कथन किया है, वही यहां भी कहना चाहिये । इसी प्रकार यावत्
१८ प्रश्न-अपजत्तबायरतेउकाइए णं भंते ! समयखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोगखेतणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते पजत्तसुहुमतेउकाइयत्ताए उपवजित्तए से णं भंते !० ?
१८ उत्तर-सेसं तं चेव ।
भावार्थ-१८ प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव, मनुष्य-क्षेत्र में मरण-समुद्घात कर के ऊर्ध्वलोक क्षेत्र की त्रसनाड़ी के बाहर के क्षेत्र में पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकपने उत्पन्न हो, तो० ?
१८ उत्तर-हे गौतम ! शेष पूर्वोक्त प्रकार से ही।
१९ प्रश्न-अपजत्तबायरतेउकाइए णं भंते ! समयखेत्ते समो. हए, समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपजत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कइसमइएणं विग्गहेणं उववजेज्जा ? ___ १९ उत्तर-गोयमा ! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org