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________________ ३७०० भगवती सूत्र-श. ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति १६ प्रश्न-अहोलोयखेत्तणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता ? १६ उत्तर-एवं बायरपुढविकाइयस्स वि अपज्जत्तगस्स पजत्त. गस्स य भाणियन्वं ८० । एवं आउकाइयस्स चउन्विहस्स वि भाणि. यव्वं १८० । सुहुमतेउकाइयस्स दुविहस्स वि एवं चेव २०० । . भावार्थ-१६ प्रश्न-हे भगवन् ! अधोलोक क्षेत्र की त्रसनाड़ी के बाहर के क्षेत्र में मरण-समुद्घात कर के० ? १६ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार पर्याप्त और अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक में और चारों प्रकार के अपकायिक जीव में तथा पर्याप्त भौर अपर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव में भी इसी प्रकार है । १७ प्रश्न-अपज्जत्तबायरतेउक्काइए णं भंते ! समयखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोगखेत्तणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपजत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उपवजित्तए से णं भंते ! कइसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा। १७ उत्तर-गोयमा ! दुसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववजेजा। प्रश्न-से केणटेणं० ? उत्तर-अट्ठो जहेव रयणप्पभाए तहेव सत्त सेढीओ। एवं जाव भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपर्याप्त बावर तेजस्कायिक जीव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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