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________________ ३६९४ भगवती सूत्र - श. ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति १३ प्रश्न - से केणट्टेणं० ? १३ उत्तर एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेदीओ पण्णत्ताओ. तं जहा - १ उज्जुआयता जाव अद्धचकवाला । एगओवंकाए सेटीए उववज्जमाणे दुसमहणणं विग्गहेणं उववजेज्जा, दुहओवंकाए सेटीए उववज्जमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, से तेणट्टे० । एवं पज्जतसु वि वायरते उकाइए। सेसं जहा रयणप्पभाए । जे वि बायरते काइया अपज्जत्तगा य पज्जत्तगा य समयखेत्ते समोह णित्ता दोचा पुढवीए पच्चच्छिमिल्ले चरिमंते पुढविकाइएस चउन्विहेसु, आउकाइरसु चउन्विहेसु, तेउकाइएस दुविहेसु, वाउकाइएस चउब्विहेसु, वणस्सइकाइए चउव्विसु उववजंति ते वि एवं चैव दुसमइएण वा तिसम एण वा विग्गण उववा एयव्वा । बायरतेउकाइया अपज्जत्तगा य पज्जत्तगा य जाहे तेसुं चेव उववज्जंति ताहे जहेब रयणप्पभाए तव एगसमय दुसमइय-तिसमइयविग्गहा भाणियव्वा सेसं जहेव रयणप्पभाए तहेव णिरवसेसं । जहा सकरप्पभाए वत्तव्वया भणिया एवं जाव असत्तमाए वि भाणियव्वा । Jain Education International भावार्थ - १३ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या कारण है कि वह दो या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। ? १३ उत्तर - हे गौतम! मैने सात श्रेणियां कही हैं। यथा-ऋज्वायता यावत् अर्द्धचक्रवाल । जो एकतोवका श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह दो समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है और जो उभयतोवा श्रेणी से उत्पन्न होता है, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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