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________________ भगवतो मुत्र-ग. ३४ अवालर शता १ उ १ विगहगति उववजित्तए० ? . ११ उत्तर-एवं जहेव रयणप्पभाए जाव से तेणटेणं । एवं एएणं कमेणं जाव पज्जत्तएसु सुहुमतेउकाइएसु । भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, शर्कराप्रमा पृथ्वी के पूर्व चरमान्त में मरण-समुद्घात कर के शर्कराप्रभा के पश्चिम चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न हो ? .. ११ उत्तर-हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के कथनानुसार, यावत् 'इस कारण ऐसा कहा है' पर्यन्त और इस क्रम से यावत् पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्यन्त । " १२ प्रश्न-अपजत्तसु हुमपुढविकाइए णं भंते ! सपकरप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए समयखेते अपजत्तवायरतेउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कइसमएणं०-पुच्छा। १२ उत्तर-गोयमा ! दुसमइएण वा तिममइएण वा विग्गहेण उववज्जेजा। भावार्थ--१२ प्रश्न-हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, शर्कराप्रभा पृथ्वी के पूर्व चरमान्त में मरण-समुद्घात कर के मनुष्य-क्षेत्र में अपप्ति बादर तेजस्कायिफपने उत्पन्न हो, तो वह कितने समय की विग्रहगति से.? १२ उत्तर-हे गौतम ! दो अथवा तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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