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भगवती गूत्र-श. ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रगति
खेते य उववाहया, एवं एएणं चेव कमेणं पचच्छिमिल्ले चरिमंते समयखेते य समोहया पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाएयव्वा तेणेव गमएणं । एवं एएणं गमएणं दाहिणिल्ले चरिमंते समोहयाणं उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाओ, एवं चेव उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया दाहिणिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाएयब्वा तेणेव गमएणं।
भावार्थ-१० प्रश्न-हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, रत्नप्रमा पृथ्वी के पश्चिम चरमान्त में समुद्घात कर के, रत्नप्रभा पथ्वी के पूर्व चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न हो, तो कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
१० उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । पूर्व चरमान्त के सभी पदों में समदघात कर के पश्चिम चरमान्त में और मनुष्य-क्षेत्र में तथा जिसका मनुष्य-क्षेत्र में समुद्घातपूर्वक पश्चिम चरमान्त में और मनुष्य-क्षेत्र में उपपात कहा, उसी प्रकार उसी क्रम से पश्चिम चरमान्त में और मनुष्य-क्षेत्र में समुद्घातपूर्वक पूर्व चरमान्त में और मनुष्य-क्षेत्र में उसी गमक से उपपात होता है और इसो प्रकार दक्षिण के चरमान्त से समुद्घातपूर्वक उत्तर के चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात तथा उत्तर चरमान्त में और मनुष्य क्षेत्र से समुद्घात कर के दक्षिण चरमान्त में और मनुष्य-क्षेत्र में उपपात कहना चाहिये ।
.११ प्रश्न-अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए सरकरप्पभाए पुढवीए पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए
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