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________________ भगवती स्त्र-श.३४ अवान्तर शतक १ उ.१ विग्रहगति ३६११ का मनुष्य-क्षेत्र में समुदघात और उपपात कहना चाहिये । पृथ्वीकायिक उपपात के समान चार-चार भेद से वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीव का उपपात भी कहना चाहिये । यावत् ९ प्रश्न-पजत्ताबायरवणस्सइकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्प. भाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्छिमिल्ले चरिमंते पजत्तबायरवणस्सहकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कइसमइएणं० ? ९ उत्तर-सेसं तहेव जाव से तेणटेणं० । ४०० भावार्थ-९ प्रश्न-हे भगवन् ! पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीव, रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्व चरमान्त में मरण-समुद्घात कर के इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पश्चिम चरमान्त में बादर वनस्पतिकायिकपने उत्पन्न हो, तो कितने समय. को विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? ९ उत्तर-हे गौतम ! पूर्वोक्त यावत् 'इस कारण ऐसा कहा है' पर्यन्त । .१० प्रश्न-अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहणित्ता जे भविए इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उपवजित्तए से णं भंते ! कहसमइएणं० ? १० उत्तर-सेसं तहेव णिरवसेसं । एवं जहेव पुरच्छिमिल्ले चरिमंते सव्वपएसु वि समोहया पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उपधाइया, जे य समयखेत्ते समोहया पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते समय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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