________________
भगवती सूत्र - ३३ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति
८ प्रश्न - अपजत्तवायर ते उकाइए णं भंते! मणुरसखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए मणुस्सखेत्ते अपजत्तबायर तेउका इयत्ताए उववजित्तए सेणं भंते! कसम एणं० ?
८ उत्तर - सेसं तं चैव । एवं पज्जत्तबायर तेउका इयत्ताए वि उववायव्वो । वाउकाइयत्ताए य वणस्स इकाइयत्ताए य जहा पुढविकाड़एस तहेव चउकरणं भेएणं उववाएयव्वो । एवं पज्जत्तवायर तेउकाइओ विसमयखेत्ते समोहणावेत्ता एपसु चेव वीसाए ठाणेसु उववायव्वो । जव अपज्जत्तओ उववाहओ, एवं सव्वत्थ वि बायर तेउकाइया अपज्जतगा य पज्जत्तगा य समयखेत्ते उववायव्वा समोहणावेयव्वा वि २४० । वाउकाइया वणस्सइकाइया य जहा पुढविकाइया तहेव चकरणं भेएणं उववायव्वा जाव
कठिन शब्दार्थ - समयखेते समय क्षेत्र - मनुष्य क्षेत्र ।
भावार्थ-८ प्रश्न है भगवन् ! अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव, जो .: मनुष्य क्षेत्र में मरण-समुद्घात कर के मनुष्य क्षेत्र में अपर्याप्त बादर तेजस्कापिने उत्पन्न होने के योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रह गति से उत्पन्न होता है ?
३६९०
८ उत्तर - हे गौतम! पूर्ववत् । इसी प्रकार पर्याप्त बादर ते जस्कायिकपने भी उपपात कहना चाहिये। जिस प्रकार पृथ्वीकायिक में कहा, उसी प्रकार चार भेदों से वायुकायिकपने और वनस्पतिकायिकपने उपपात कहना चाहिये । इसी प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक का भी मनुष्य क्षेत्र में समुद्घात कर के इन बीस स्थानों में उपपात कहना चाहिये। जिस प्रकार अपर्याप्त का उपपात कहा है, उसी प्रकार सभी पर्याप्त और अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org