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भगवती सूत्र-श. २५ उ. १ योग पन्द्रह
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वीर्यान्तराय. कर्म के क्षयोपशमादि की विचित्रता से योग के पन्द्रह भेद होते हैं। किसी जीव का योग दूसरे जीव की अपेक्षा जघन्य (अल्प) होता है और किसी जीव की अपेक्षा उत्कृष्ट होता है । उपर्युक्त जीवों के चौदह भेदों सम्बन्धी प्रत्येक के जघन्य और उत्कृष्ट भेद होने से अट्ठाईस भेद होते हैं। वहां योगों के अल्प-बहुत्व का कथन किया है । इनमें सूक्ष्म, अपर्याप्त एकेन्द्रिय का जघन्य योग सब से अल्प है, क्योंकि उनका शरीर सूक्ष्म और अपर्याप्त होने से (अपूर्ण होने के कारण) दूसरे सभी जीवों के योगों की अपेक्षा उसका योग सब से अल्प होता है और यह कार्मण-शरीर के व्यापार के समय में होता है। तत्पश्चात् समयसमय योगों की वृद्धि होती है और उत्कृष्ट योग तक बढ़ता है। अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय जीव का जघन्य योग, पूर्वोक्त की अपेक्षा असंख्यात गुण होता है । बादर होने के कारण - उसका योग असंख्यात गुण बड़ा होता है । इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिये ।
यद्यपि पर्याप्त ते इन्द्रिय की उत्कृष्ट काया की अपेक्षा पर्याप्तक बेइन्द्रियों की काया तथा संज्ञी पञ्चेन्द्रिय और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय की उत्कृष्ट काया, सख्यात योजन होने से संख्यात गुण ही होती है, तथापि यहाँ परिस्पन्दन (कम्पन-हलन चलन) रूप योग की विवक्षा होने से तथा क्षयोपशम विशेष की सामर्थ्य से असंख्यात गुण होने का कथन विरुद्ध नहीं है, क्योंकि यह कोई नियम नहीं है कि अल्पकाय वाले का परिस्पन्दन अल्प ही होता है, और महाकाय वाले का परिस्पन्दन बहुत ही होता है, क्योंकि इससे विपरीतता भी देखी जाती है । जैसे-अल्पकाय वाले का परिस्पन्दन महान् भी होता है और महाकाय वाले का परिस्पंदन अल्प भी होता है।
नरक क्षेत्र में प्रथम समय में उत्पन्न नैरयिक 'प्रथम समयोत्पन्नक' कहलाता है। इस प्रकार के दो नैरयिक जीव जिनकी उत्पत्ति विग्रहगति से अथवा ऋजुगति से आ कर अथवा 'एक की विग्रहगति से और दूसरे की ऋजुगति से आ कर हुई है, वे 'प्रथम समयोत्पन्नक' कहलाते हैं। जिन दोनों के योग समान हों, वे 'समयोगी' कहलाते हैं और जिनके विषम हों, वे 'विषमयोगी' कहलाते हैं । ____ आहारक नारक की अपेक्षा अनाहारक नैरयिक हीन-योग वाला होता है, क्योंकि जो नैरयिक ऋजुगति से आ कर आहारकपने उत्पन्न होता है, वह निरन्तर आहारक होने के कारण पुद्गलों से उपचित (बढ़ा हुआ) होता है। इसलिये वह अधिक योग वाला होता है । जो नैरयिक विग्रहगति से आ कर अनाहारकपने उत्पन्न होता है, वह अनाहारक .. होने से पुद्गलों से अनुपचित होता है, अतः हीन-योग वाला होता है। जो समान समय
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