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भगवती सूत्र-श. २५ उ. १ योग पन्द्रह
जोगस्स-एएसि णं दसण्ह वि तुल्ले उकोसए जोए असंखेजगुणे ।
की 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति । * ॥ पणवीसइमे सए पढमो उद्देसो समत्तो ॥
भावार्य-६ प्रश्न-हे भगवन् ! इन पन्द्रह प्रकार के योगों में कौन योग किस योग से जघन्य और उत्कृष्ट रूप से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ?
६ उत्तर-हे गौतम ! १ कार्मण-शरीर का जघन्य काय योग सब से अल्प है, २ उससे औदारिक-मिश्र का जघन्य योग असंख्यात गुण है, ३ उससे वैक्रिय मिश्र का जघन्य योग असंख्यात गुण है। ४ उससे औदारिक शरीर का जघन्य योग असंख्य गुण है। ५ उससे वैक्रिय-शरीर का जघन्य योग असंख्य गुण है । ६ उससे कार्मण-शरीर का उत्कृष्ट योग असंख्येय गुण है । ७ उससे आहारक-मिश्र का जघन्य योग असंख्यात गुण है । ८ उससे आहारक मिश्र का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है। ९-१० उससे औदारिक-मिश्र और वैक्रियमिश्र का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है और परस्पर तुल्य है। ११ उससे असत्यामषा मनोयोग का जघन्य योग असंख्यात गुण है । १२ उससे आहारकशरीर का जघन्य योग असंख्यात गुण है । १३-१९ उससे तीन प्रकार का मनोयोग और चार प्रकार का वचनयोग, इन सात का जघन्य योग असंख्यात गण है और परस्पर. तुल्य है । २० उससे आहारक-शरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है-। २१-३० उससे औदारिक-शरीर, वैक्रिय-शरीर, चार प्रकार का मनोयोग और चार प्रकार का वचन योग, इन दस का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है और परस्पर तुल्य है।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन--योग-आत्म-प्रदेशों के परिस्पन्दन (कम्पन) को 'योग' कहते हैं
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