SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२०४ भगवती सूत्र-श. २५ उ. १ योग पन्द्रह जोगस्स-एएसि णं दसण्ह वि तुल्ले उकोसए जोए असंखेजगुणे । की 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति । * ॥ पणवीसइमे सए पढमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्य-६ प्रश्न-हे भगवन् ! इन पन्द्रह प्रकार के योगों में कौन योग किस योग से जघन्य और उत्कृष्ट रूप से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? ६ उत्तर-हे गौतम ! १ कार्मण-शरीर का जघन्य काय योग सब से अल्प है, २ उससे औदारिक-मिश्र का जघन्य योग असंख्यात गुण है, ३ उससे वैक्रिय मिश्र का जघन्य योग असंख्यात गुण है। ४ उससे औदारिक शरीर का जघन्य योग असंख्य गुण है। ५ उससे वैक्रिय-शरीर का जघन्य योग असंख्य गुण है । ६ उससे कार्मण-शरीर का उत्कृष्ट योग असंख्येय गुण है । ७ उससे आहारक-मिश्र का जघन्य योग असंख्यात गुण है । ८ उससे आहारक मिश्र का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है। ९-१० उससे औदारिक-मिश्र और वैक्रियमिश्र का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है और परस्पर तुल्य है। ११ उससे असत्यामषा मनोयोग का जघन्य योग असंख्यात गुण है । १२ उससे आहारकशरीर का जघन्य योग असंख्यात गुण है । १३-१९ उससे तीन प्रकार का मनोयोग और चार प्रकार का वचनयोग, इन सात का जघन्य योग असंख्यात गण है और परस्पर. तुल्य है । २० उससे आहारक-शरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है-। २१-३० उससे औदारिक-शरीर, वैक्रिय-शरीर, चार प्रकार का मनोयोग और चार प्रकार का वचन योग, इन दस का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण है और परस्पर तुल्य है। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन--योग-आत्म-प्रदेशों के परिस्पन्दन (कम्पन) को 'योग' कहते हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy